डूबते आदमी का जल से ऊपर उठा यह हाथ

डूबते आदमी का जल से ऊपर उठा यह हाथ

डूबते आदमी का
जल से ऊपर उठा यह हाथ
फिर-फिर शून्य को पकड़ता
मरे हाथ - 
तुमने रचा।

हथकड़ियाँ पहनाने के लिए
अब भी है यह बचा।

इसे शुमार कर लो उस गिनती में
जिसे तुम भूलने जा रहे हो।

नित नई चट्टान तोड़कर
उगते पेड़-सा यह हाथ,
सख़्त धरती की परतें फोड़कर

निकली घास की पत्ती-सा यह हाथ,
निरंतर मेरे साथ - 
जिसके इशारे पर
पानी में पड़ी लाश-सा
तुम फूलते जा रहे हो।

इसे शुमार कर लो उस गिनती में
जिसे तुम भूलते जा रहे हो।
अकड़ी हैं उँगलियाँ-शाखाएँ
इन पर चिड़ियों से कहो
आएँ, गाएँ
पर फैलाएँ।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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