पत्रकार के जीवन को बयां करती है ये कविता-
मैं खोज हूँ ,
मैं विचार हूँ ,
मैं अभिव्यक्ति,की पुकार हूँ
मैं सत्य का प्रसार हूँ
मैं पत्रकार हूँ |
किसी सच की, तलाश में
या किसी शक के ,आभास में
मैं किसी लाचार का विचार हूँ
या किसी नेता पर प्रहार हूँ
मैं पत्रकार हूँ |
मैं चाहूँ तो, राई का पहाड़ बना दूं |
या महज़ ,आरोप की सज़ा सुना दूं
मैं चाहूँ तो बिन बात ,की हवा बना दूं
या किसी ,उठती आवाज़ की भ्रूण हत्या करवा दूं
मैं विधि का विधान हूँ
हां मैं पत्रकार हूँ |
कभी संसद पर चली ,उस गोली को
कभी बोर्डर पार की उस बोली को
कभी ताज के उन हमलो को
दिखाया मैंने ,निस्पक्षता से
मगर आज भूल अपनी सुहनहरी पत्रकारिता की पीढ़ी
मैं खोज रहा हूँ स्वर्ग के रास्ते की सीढ़ी
मुझ पर आरोप है कि, मैं बिक गया हूँ
सत्य छोड़ टी.आर.पी की भेंट चढ़ गया हूँ
मैं कॉर्पोरेट की कटपुतली बन गया हूँ
सवालो के घेरे मे है आज मेरा आधार
मेरी निस्पक्षता है आज बीच मझधार |
हां मैं पत्रकार हूँ।
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