प्रेम में बुद्ध हो जाना था तुम्हें ! , पूनम अरोड़ा की कविता


ऐसे ही तो सन्देश सुने थे तुमने
विसर्जित देहों के धनुष से निकले तीरों समान
हाँ, चुभे थे मुझे
क्या देखा था तुमने पारिजात पर चढ़ा कोहरा?
क्या सुनी थी तुमने रतिकाल के मादक
पाखियों की सूक्ष्म ध्वनि?
और उनके आलिंगन में निद्रालीन एक नव भ्रूण?
प्रेम में बुद्ध हो जाना था तुम्हें ! , पूनम अरोड़ा की कविता

कैसे सुनते?
क्योंकि तुम प्रेम में बुद्ध होना चाहते थे

मैं चाहती थी कि तुम पाप करो
और अपनी विस्मृत स्मृति से करो
मैं चाहती थी कि तुम जीवित करो कोई अवशेष प्रेम का
मैं चाहती थी तुम एक मृतप्राय ईश्वर हो जाओ

ताकि मैं जान पाती कि अंतिम कुछ भी नहीं होता
प्रारम्भ की हर भाषा स्पर्श है
प्रत्येक अंतिम अपने तीन जन्म पीछे की स्मृतियों में खुद को खोजता है
खोजता है उसी तरह
जिस तरह मैं शापित हूँ तुम्हें खोजने में। 

यही एकमात्र घटना घटी थी तुम्हारे जाने के बाद
बुद्ध !

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