रावण जन्म का क्या है रहस्य..

भले ही हिन्दू धर्म को मानने वाले लंकापति रावण को अनीति,अनाचार, दंभ, काम, क्रोध, लोभ, अधर्म और बुराई का प्रतीक क्यों न मानते हों और उससे घृणा करते हों परन्तु हमें ये नहीं भूलना चाहिए की दशानन रावण एक राक्षस होने के साथ-साथ एक ज्ञानी भी था...आज हम आपको ये बताएंगे कि आखिर रावण के जन्म के समय ऐसा क्या हुआ था कि एक ब्राह्मण पुत्र होते हुए भी उसमे राक्षसत्व वाले गुण आ गए... रावण शिव का परम भक्त होने के अलावा एक प्रकांड विद्वान ब्राह्मण, महाज्ञानी, राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा था. रावण में सत्व, रज और तम तीनों ही गुण थे. आखिर रावण का चरित्र एक विद्वान ब्राह्मण था लेकिन फिर वो राक्षस कैसे बन गया आइए जानते रावण के जन्म से जुड़ा ये रहस्य....
रावण के जन्म की कथा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण पुलत्स्य मुनि के पुत्र महर्षि विश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र था. पौराणिक काल में माली, सुमाली और मलेवन नाम के 3 क्रूर दैत्य भाई हुआ करते थे. ब्रह्म देव से बलशाली होने के वरदान पाकर इन्होंने चारों ओर अत्याचार मचा रखा था. जब इनका अत्याचार बढ़ गया तब ऋषि-मुनि और देवतागण भगवान विष्णु के पास गए. श्रीहरि ने दुष्ट राक्षसों का विनाश करने के लिए उनसे युद्ध किया.
श्रीहरि ने युद्ध में माली सहित कई अन्य राक्षस का नरसंहार किया लेकिन सुमारी और मलेवन अपने परिवार सहित पाताल में छुप गया. माली ने देवताओं पर विजय प्राप्ति के लिए एक योजना बनाई. उसने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि विश्रवा से करने का विचार किया ताकि उनसे एक शक्तिशाली पुत्र का जन्म हो ब्राह्मण भी हो और राक्षसों के कहने पर देवताओं के साथ युद्ध करके उन्हें हरा सके.
देवों पर विजय पाने राक्षसी पुत्री का ऋषि से विवाह कराया
सुमाली अपनी पुत्री कैकसी के पास पहुंचा और उससे कहा कि राक्षस वंश के कल्याण के लिए मैं चाहता हूं कि तुम परमपराक्रमी महर्षि विश्रवा के पास जाकर उनसे विवाह करो और पुत्र प्राप्त करो. कैकसी ने पिता की बात स्वीकार ली लेकिन जब वह ऋषि विश्रवा से मिलने पहुंची तब शाम हो चुकी थी. आश्रम पहुंचक कैकसी ने ऋषि को मन की इच्छा बतलाई.
ऐसे रावण ब्राह्मण होते हुए भी राक्षस बना
ऋषि विश्रवा उससे विवाह करने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने कहा कि कैकसी तुम कुबेला में मेरे पास आई हो, अत: मेरे पुत्र क्रूर कर्म करने वाले होंगे. उन राक्षसों की सूरत भी भयानक होगी लेकिन मेरा तीसरा पुत्र मेरी ही तरह धर्मात्मा होगा. इस तरह ऋषि विश्रवा और कैकसी ने रावण, कुंभकर्ण, पुत्री सूपर्णखा का जन्म हुआ. सबसे आखिर में और तीसरे पुत्र के रूप में धर्मात्मा विभीषण का जन्म हुआ.
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