मन को मौन करना – आत्मा की सच्ची शांति का मार्ग
आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में बाहरी शोर बढ़ता जा रहा है — ट्रैफिक, मोबाइल, सोशल मीडिया... और इन्हीं के साथ भीतर का शोर भी! मन लगातार बोलता रहता है — “यह करो, वह सोचो।” इस कोलाहल में हम सब उस मौन की तलाश करते हैं जहाँ भीतर सन्नाटा नहीं, बल्कि शांति बसती है।
मन को मौन करना क्या होता है?
मन को मौन करना मतलब विचारों की भीड़ को थामना — न भागना, न उलझना। यह वह अवस्था है जब मन स्थिर हो जाता है और आत्मा को अपने ईश्वरीय स्वरूप का अनुभव होता है। वेदों के अनुसार, मन एक चंचल बंदर जैसा है, पर अभ्यास और ईश-कृपा से इसे शांत किया जा सकता है।
जब मन शांत होता है, तब हम अपने भीतर की सच्ची पहचान से जुड़ते हैं — आत्मा से, जो शुद्ध, शांत और दिव्य है।
जब मन मौन होता है...
- दिव्य शांति का अनुभव: भीतर गहराई में आनंद और प्रेम का उदय होता है।
- अज्ञान का अंत: सत्य और ज्ञान का प्रकाश फैलता है।
- एकांत का आनंद: आत्मा में इतना सुख होता है कि बाहरी संगति की आवश्यकता नहीं रहती।
- ईश्वर से जुड़ाव: जब मन राग, द्वेष, क्रोध से मुक्त होता है, तब ईश्वर से एकत्व संभव होता है।
मन को मौन कैसे करें?
1. ध्यान करें: रोज़ कुछ समय ईश्वर के नाम, रूप या लीलाओं पर ध्यान लगाएँ। धीरे-धीरे विचार शांत होने लगते हैं।
2. इच्छाशक्ति बढ़ाएँ: “मैं नहीं करूंगा, मैं करूंगा, मुझे करना है” — यह तीन संकल्प मन को दिशा देते हैं।
3. सचेत रहें: वर्तमान क्षण में जीना सीखें। विचारों को देखें, पर उनमें उलझें नहीं।
4. साक्षीभाव अपनाएँ: खुद को मन और शरीर से अलग आत्मा के रूप में पहचानें।
5. अभ्यास और वैराग्य: नियमित साधना करें और धीरे-धीरे सांसारिक मोह से दूरी बनाएँ।
मन को मौन करना भागना नहीं, जागना है — अपनी आत्मा और ईश्वर से जुड़ने की दिशा में पहला कदम। जब मन शांत होता है, तभी सच्ची खुशी, प्रेम और शांति का अनुभव होता है।
“जब मन मौन होता है, तब ईश्वर बोलता है।”


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