गर्भावस्था में थायरॉइड: खतरे और बचाव के आसान तरीके

गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं। इस दौरान थायरॉइड ग्रंथि की समस्या (हाइपोथायरॉइडिज़्म या हाइपरथायरॉइडिज़्म) का खतरा बढ़ जाता है। थायरॉइड हार्मोन गर्भ और बच्चे दोनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर यह संतुलित न हो, तो माँ और शिशु दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।

क्यों रहता है थायरॉइड का खतरा?

हार्मोनल बदलाव: गर्भावस्था में एचसीजी और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के स्तर बढ़ने से थायरॉइड ग्रंथि पर असर पड़ता है।

आयरन और आयोडीन की कमी: आयोडीन और आयरन की कमी से थायरॉइड हार्मोन का उत्पादन प्रभावित होता है।

पहले से मौजूद थायरॉइड रोग: जो महिलाएँ पहले से थायरॉइड के मरीज हैं, उन्हें गर्भावस्था में और सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।

ऑटोइम्यून कारण: हाशिमोटो या ग्रेव्स जैसी ऑटोइम्यून बीमारियाँ थायरॉइड स्तर को असंतुलित कर सकती हैं।

थायरॉइड से जुड़ी समस्याएँ गर्भावस्था में

हाइपोथायरॉइडिज़्म (थायरॉइड कम सक्रिय): थकान, वजन बढ़ना, कब्ज, ठंड लगना

हाइपरथायरॉइडिज़्म (थायरॉइड ज्यादा सक्रिय): वजन कम होना, हृदय की धड़कन तेज होना, बेचैनी

गर्भ में विकास में रुकावट, प्री-मैच्योर डिलीवरी, कम वजन का शिशु

बचाव और देखभाल

आयोडीन का पर्याप्त सेवन: आयोडीन युक्त नमक का उपयोग करें।

संतुलित आहार: हरी सब्ज़ियाँ, दालें, अंडा, दूध और फल शामिल करें।

समय पर जांच: थायरॉइड फंक्शन टेस्ट (T3, T4, TSH) समय-समय पर कराएं।

दवा का सही इस्तेमाल: डॉक्टर की सलाह के बिना थायरॉइड दवा न लें।

तनाव कम करें: योग, ध्यान और पर्याप्त नींद थायरॉइड स्तर संतुलित रखने में मदद करती है।

पुरानी दवा या रोग की जानकारी: अगर पहले से थायरॉइड का इलाज चल रहा है, डॉक्टर को गर्भावस्था की जानकारी दें।

गर्भावस्था में थायरॉइड का खतरा अनदेखा नहीं किया जा सकता। सही खान-पान, नियमित जांच और डॉक्टर की सलाह से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इससे माँ और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।

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