प्रेमानंद महाराज ने बताए पति-पत्नी के रिश्ते और त्याग की स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण बातें

वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने पति-पत्नी के रिश्तों को लेकर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। महाराज जी बताते हैं कि पति-पत्नी का रिश्ता अत्यंत पवित्र होता है और इसे हमेशा अटूट रखना चाहिए। जीवनसाथी के प्रति प्रेम, सहयोग और क्षमा का भाव बनाए रखना आवश्यक है। लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कुछ परिस्थितियों में जीवनसाथी का त्याग करना ही सही होता है।

महाराज जी के अनुसार, यदि पति या पत्नी व्यभिचारी हो—यानि विवाह के बावजूद किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाए—तो रिश्ते को तुरंत तोड़ देना चाहिए। व्यभिचारी जीवनसाथी के साथ रहना व्यक्ति के जीवन में संकट और अस्थिरता पैदा कर सकता है। उनका कहना है कि पति की गलतियों को माफ किया जा सकता है और पत्नी के प्रति सहयोग और सहिष्णुता जरूरी है, लेकिन व्यभिचार की स्थिति में त्याग ही उचित निर्णय है।

प्रेमानंद महाराज ने यह भी बताया कि पत्नी पति के अधीन होती है, और भले ही बीच-बीच में विवाद या गाली-गलौच हो, तब भी उसे त्यागना नहीं चाहिए। जीवन में छोटी गलतियों को क्षमा और प्रेम के साथ सहन करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, महाराज ने भक्ति के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि दंपतियों को अपनी भक्ति गुप्त रूप से करनी चाहिए। भक्ति को इतनी गंभीरता से न करें कि उसका प्रभाव आपसी संबंधों पर विपरीत पड़े। थोक पूजा और बाहरी दिखावा, जैसे दिनभर ठाकुरजी की सेवा में लगे रहना, यदि रिश्ते में तनाव उत्पन्न कर रहा हो तो उसे प्राथमिकता न दें। असली भक्ति अंतःकरण से राधा-राधा जपने में है, जो न केवल सुख देती है बल्कि वैर और विवाद को भी कम करती है।

प्रेमानंद महाराज का संदेश स्पष्ट है—पति-पत्नी के रिश्ते को सत्कार, प्रेम, और क्षमा के आधार पर निभाएं, लेकिन व्यभिचारी या अनैतिक व्यवहार की स्थिति में जीवनसाथी का त्याग करना जीवन के लिए आवश्यक है।

 

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.