क्या निजीकरण सही है ?

अगर आप भी नौकरी पेशा हैं और नौकरी कर रहे हैं तो यह खबर आपके लिए ही है | जी हाँ हो सकता है इसका अगला हिस्सा आप हों | अगर आप रोज़ नौकरी पर जा रहे हैं और एकदिन आपसे कह दिया जाए की अब आपकी ज़रूरत नहीं है तब क्या कुछ आप पर बीतेगी ये आपसे बेहतर कोई और नहीं जान सकता | 
हिन्दुस्तान में बड़े पैमाने पर सरकार  निजीकरण कर रही है चाहें सुविधा का हो या चाहें सरकारी महकमों का हालाँकि इसके पीछे सर्कार का तर्क है की निजीकरण से कार्यकुशलता, नवाचार, आर्थिक विकास, बेहतर सेवा गुणवत्ता, बढ़ी हुई ग्राहक संतुष्टि, कम राजकोषीय बोझ और बेहतर जवाबदेही बढ़ सकती है . पर वहीँ जनता का कहना है कि सरकार सुविधाओं को सुधारने में सक्षम नहीं है इसलिए प्राइवेट कंपनियों को सरकारी तंत्र चलाने की योजना सरकार बना रही है | इसको और बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें समझना होगा की आखिर निजीकरण की जरुरत क्यों पड़ी ? 

सरकार  बड़े पैमाने पर डिसइन्वेस्टमेंट  करने जा रही है जिससे लगभग 1 हज़ार करोड़ सरकार कमाएगी और सरकार को इसकी जरुरात इसलिए पढ़ रही है क्योंकि सर्कार के पास इतने पैसे नहीं हैं | अब विपक्ष अगर सवाल कर रहा है तो सरकार के पास उसका भी कोई जटिल जवाब नहीं है |
सार्वजनिक संस्थाओं का निजीकरण संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। निजीकरण से सामाजिक और आर्थिक न्याय की प्राप्ति नहीं हो सकती। इससे केवल बड़े उद्योगपतियों को लाभ होगा और पूंजी के केन्द्रीकरण से वर्गभेद को बढ़ावा मिलेगा। निजीकरण की व्यवस्था अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति पर आधारित है, जिसमें सार्वजनिक और सामाजिक हितों की उपेक्षा होती है।

भारत एक विकासशील देश है। अत: यहां सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण बहुत ही घातक सिद्ध होगा। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की बड़ी आबादी दो समय का भोजन भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाती हैं। अत: यहां सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण करना एक तरह से गरीब के पेट पर लात मारने के समान है। अत: सरकार को सीधे जनता से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्रों का तो निजीकरण किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए। संसद के बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री समेत कई मंत्रियों ने खुलकर विनिवेश और निजीकरण की वकालत की। खुद पीएम ने कहा कि निजी क्षेत्र को साथ लाए बिना अर्थव्यवस्था का कल्याण संभव नहीं है। इससे पहले किसी भी सरकार ने विनिवेश और निजीकरण की इतनी खुली वकालत नहीं की |

सरकार अगर सरकारी तंत्र सुधारने में इतनी सक्षम नहीं है तो उसको मानना चाहिए परन्तु उन सुविधाओं को सरकारी कंपनियों को बेच देना किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं है | ऐसे तो फिर मंत्रियों का भी आंकलन होना चाहिए और जो काम नहीं कर रहे उनकी जगह कोई प्राइवेट कम्पनी को मंत्रालय का  ठेका देना चाहिए | 

 

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