रहीम के इन 5 दोहों में छिपा है जीवन का मूल मंत्र

रहीम, जिनका पूरा नाम अब्दुल रहीम खान-ए-ख़ाना था, भारतीय साहित्य के एक महान कवि और विद्वान थे। वे मुग़ल सम्राट अकबर के दरबारी कवि और प्रमुख व्यक्तित्व थे। रहीम का जन्म 1556 ई. में दिल्ली में हुआ था। उनका जीवन अत्यंत रोमांचक और प्रेरणादायक रहा। रहीम की कविताएँ मुख्य रूप से हिंदी और उर्दू में रचित थीं। उनके दोहे बहुत ही प्रसिद्ध हैं और आज भी जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। उनके काव्य में प्रेम, ज्ञान, मानवता और जीवन के गूढ़ रहस्यों की सरल व्याख्या मिलती है। रहीम के दोहे न केवल धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उन्होंने शास्त्रों और जीवन के सत्य को अत्यंत सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। रहीम के दोहे भारतीय साहित्य के अमूल्य रत्न हैं, जिनमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से व्यक्त किया गया है। यहाँ उनके 5 चुनिंदा दोहे दिए जा रहे हैं, जिनमें जीवन के गहरे अर्थ छिपे हैं:

"रहीम कछु बोल बिन, नेह के बिना जीवन।
काज करिहें सत्य धर्म, सेवार्थ की हो काम।"

अर्थ: जीवन में सच्चे प्रेम और ईमानदारी से काम करना चाहिए। बिना बोलें, बिना किसी दिखावे के अपनी निस्वार्थ सेवा करनी चाहिए। केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि सच्चे उद्देश्य से कार्य करें।

"रहीम बड़ों का ना छोटा, छोटा ना बड़ाय।
जो तपाए के सबका हक, वह सच मुंह पाए।"

अर्थ: कभी किसी को छोटा या बड़ा न समझें, क्योंकि जो समय और परिस्थिति में सबसे बड़ा या छोटा है, वह अपनी मेहनत और सत्य के द्वारा असल में अपनी पहचान बनाता है।

"रहीम मनुष्य और धन, दो चीजें साथ नहीं।
दोनों साथ चलें तो दोनों की हार है।"

अर्थ: धन और मानवता दोनों का संग साथ नहीं रह सकता। यदि कोई दोनों के बीच संतुलन बनाता है, तो वह असल में हार ही मानता है। असली मानवता धन से ऊपर होती है।

"जिनि तिनि कमल, शिखन की राह।
अनर्थ करि न कइ चिट्ठा।"

अर्थ: जीवन के कठिन समय में संयम और धैर्य रखना चाहिए। जैसे कमल फूल की सुंदरता पानी में खिलकर भी बनी रहती है, वैसे ही व्यक्ति का आत्मविश्वास और संस्कार उसे हर कठिनाई से उबारते हैं।

"रहीम छाछ पीजै, पर कुटुम्बा सो न पाये।
घर घर की समृद्धि चाहत, तो छाछ कर पाए।"

अर्थ: छोटे-छोटे साधनों में ही सुख और समृद्धि की खोज करनी चाहिए। केवल बाहरी दिखावे या बड़े सौदों में नहीं, बल्कि सरल जीवन में सच्ची खुशियाँ छिपी होती हैं।

इन दोहों में रहीम ने न केवल जीवन के मूल्य और गुणों को बताया, बल्कि व्यक्ति को अपनी जीवनशैली और कार्यों में सच्चाई, ईमानदारी, और निरंतरता की ओर प्रवृत्त किया है।

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