सीएम योगी के लिए अग्निपरीक्षा होगा साल 2025 ..
योगी आदित्यनाथ के लिए 2022 का यूपी चुनाव एक रणभूमि से कम नहीं था, जहां सत्ता की कुर्सी के लिए हर एक कदम बड़ा था। राजनीति की इस जंग में, उन्होंने खुद को साबित किया और सत्ता में वापसी की। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में आई अप्रत्याशित हार ने उनके लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर दीं। अब 2025 में, योगी आदित्यनाथ के सामने कुछ ऐसी नई जंगें हैं, जो उनकी राजनीतिक यात्रा को एक नई दिशा दे सकती हैं। आइए, जानते हैं इन रोमांचक चुनौतियों के बारे में:
हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी की 7 सीटों पर जीत दर्ज कर एक बार फिर अपनी शक्ति का अहसास कराया। लेकिन अब उनकी नजरें मिल्कीपुर सीट पर हैं, जो फैजाबाद (अयोध्या) का हिस्सा है। अगर यहाँ बीजेपी की हार हुई, तो यह अयोध्या में योगी की सत्ता के लिए बड़ा सवाल खड़ा कर सकता है। विपक्ष इसे ‘अयोध्या की हार’ के तौर पर पेश कर सकता है, और योगी को इसके खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। मिल्कीपुर सीट पर जीत, उनके लिए एक ‘आखिरी जंग’ साबित हो सकती है।
वहीं , संभल में हालिया हिंसा के बाद, योगी आदित्यनाथ ने अपने बयान से यह साबित किया कि वह हिंदुत्व के एजेंडे में कोई ढील नहीं छोड़ने वाले। उनका कहना था, "संभल में भगवान विष्णु के दसवें अवतार का भविष्यवाणी है," और "बाबर ने हरिहर मंदिर को तोड़ा था।" अब, इस बयान से साफ है कि योगी हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर उतने ही गंभीर हैं जितने पहले थे। 2025 में, अगर योगी इस एजेंडे को और तेज करते हैं, तो यह उनके सामने न सिर्फ राजनीतिक, बल्कि सामाजिक उथल-पुथल का कारण भी बन सकता है।
इसके अलावा 2024 में लोकसभा चुनावों में 33 सीटों पर सिमट जाने के बाद, योगी आदित्यनाथ को पार्टी में आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ा। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ‘संगठन और सरकार’ के अंतर को लेकर अपनी राय जाहिर की थी। अब योगी के सामने अपनी पार्टी में खुद को मजबूत रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। पार्टी के अंदर बढ़ती दबाव की राजनीति, उनके नेतृत्व को कड़ी परीक्षा में डाल सकती है। यूपी में बीजेपी की राजनीति की चोटी पर बने रहने के लिए उन्हें अपनी राजनीतिक चतुराई का बखूबी इस्तेमाल करना होगा।
योगी आदित्यनाथ ने यूपी में कानून-व्यवस्था पर पकड़ मजबूत की है, लेकिन जब बात विकास की आती है, तो उनका खाता अब तक खाली नजर आता है। प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के विकास मॉडल को दिल्ली का रास्ता बनाने के लिए इस्तेमाल किया, लेकिन योगी के पास अभी तक ऐसा कोई ठोस विकास मॉडल नहीं है। 2025 में अगर उन्हें दिल्ली की राजनीति में कदम रखना है, तो उन्हें यूपी का एक मजबूत और आकर्षक विकास मॉडल पेश करना होगा। यह एक ऐसा रास्ता हो सकता है, जो न सिर्फ उनके मुख्यमंत्री पद को मजबूत करेगा, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक नई पहचान भी दिलाएगा।
देखा जाए तो इन चुनौतियों के साथ, योगी आदित्यनाथ के सामने न केवल अपनी राजनीतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखने की चुनौती है, बल्कि उन्हें एक नई दिशा में बदलाव की भी जरूरत होगी। क्या वह इन चुनौतियों का सामना कर पाएंगे या फिर नई राहों पर चलने से पहले उनकी राजनीतिक यात्रा एक नया मोड़ लेगी? यह देखने लायक होगा
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