राकेश टिकैत की सक्रियता से यूपी की सियासत में बढ़ी हलचल

उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों अलग ही मोड़ पर जाती दिख रही है। एक तरफ समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव 2024 में आजमाए पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को जमीन पर उतारने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 में मिली जीत के बाद अपनी राजनीतिक जमीन को साधने की कोशिश में जुटी हुई है। इन तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों की सक्रियता के बीच सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी अपनी स्थिति को मजबूत करने में जुटी हुई है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जाट राजनीति में दमदार राष्ट्रीय लोकदल को भाजपा अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही थी। हालांकि, पार्टी को इससे अधिक सफलता नहीं मिली। अब किसान नेता राकेश टिकैत के जरिए बड़ा संदेश देने की कोशिश की जा रही है।

टिकैत-पाठक मीटिंग से हलचल-

यूपी विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर सुगबुगाहट बढ़ने लगी है। लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान समाजवादी पार्टी ने सलेमपुर सांसद रमाशंकर राजभर से चर्चा की शुरुआत कराकर बड़ा संदेश दिया। पिछड़ा दलित समाज को साथ जोड़ने की कवायद के तौर पर देखा गया। हालांकि, चर्चा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी जब महाराजा सुहेलदेव का जिक्र किया तो इसे यूपी के राजनीतिक माहौल से जोड़कर देखा गया।

इन चर्चाओं के बीच पश्चिमी यूपी में राजनीतिक हलचल तेज होती दिख रही है। किसान नेता राकेश टिकैत एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक से उनकी मुलाकात ने प्रदेश की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।

मुलाकात के पीछे की 'राजनीति'-

डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और किसान नेता राकेश टिकैत मुलाकात को एक 'शिष्टाचार भेंट' बता रहे हैं, लेकिन समय और संदर्भ इसके पीछे कहीं गहरी रणनीति की ओर इशारा कर रहे हैं। पंचायत चुनाव आने वाले हैं। साथ ही, प्रदेश में यूपी चुनाव 2027 की तैयारी भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में किसान नेता और सरकार के नंबर दो नेता के बीच लंबी बातचीत महज औपचारिक नहीं माना जा सकता है।

टिकैत की टिप्पणी पर चर्चा-

राकेश टिकैत की डिप्टी सीएम से मुलाकात के बाद आई टिप्पणी पर चर्चा तेज हो गई है। दरअसल, किसान नेता ने बसपा प्रमुख और पूर्व सीएम मायावती को 'नंबर वन मुख्यमंत्री' बता दिया। मायावती सरकार की किसानों के प्रति नीतियों की प्रशंसा की। उन्होंने यह भी कहा कि योगी आदित्यनाथ भी किसानों के लिए बेहतर कार्य करके उसी स्थान पर पहुंच सकते हैं। राकेश टिकैत के इस बयान को सत्ता संतुलन और अपना राजनीतिक प्रभाव बनाए रखने की तौर पर देखा जा रहा है।

पश्चिम में जाट, किसान अहम-

पश्चिमी यूपी की राजनीति के केंद्र में हमेशा जाट और किसान ही केंद्र में रहे है। वर्ष 2014 के बाद से जाट समाज के बीच भाजपा का प्रभाव बढ़ा था। हालांकि, यूपी चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को इस इलाके में नुकसान हुआ। इसमें से राकेश टिकैत के प्रभाव वाले मुजफ्फरनगर, मेरठ, कैराना, रामपुर, बिजनौर आदि में भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ऐसे में भाजपा अपनी रणनीति को बदलकर आगे बढ़ रही है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राकेश टिकैत की सरकार के करीबियों से पिछले दिनों कई मुलाकातें हुई हैं। राकेश टिकैत से पूर्व डीजीपी प्रशांत कुमार और अब डिप्टी सीएम बृजेश पाठक की मुलाकात हुई। यह इशारा करती है कि बीजेपी जाट वोटबैंक में एक बार फिर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है। राकेश टिकैत इस समीकरण में एक संभावित कड़ी हो सकते हैं।

अखिलेश की बढ़ सकती हैं मुश्किलें-

किसान आंदोलन के बाद से राकेश टिकैत का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ दिखा है। वर्ष 2022 और 2024 के चुनावों में इसका फायदा सपा को मिला। हालांकि, अब उनकी बृजेश पाठक से उनकी बातचीत और बसपा की तारीफ से अखिलेश यादव की चिंता बढ़ने वाली हैं। दरअसल, बसपा यूपी की राजनीति में लगातार कमजोर हो रही है। बसपा का कोर दलित वोट बैंक लोकसभा चुनाव के दौरान सपा की तरफ जाता दिखा। ऐसे में किसान नेता राकेश टिकैत ने जिस प्रकार से मायावती को नंबर वन सीएम बताया है, इसका असर किसानों के बीच बढ़ता दिख सकता है।

अखिलेश यादव पश्चिमी यूपी में किसान और जाट वोट बैंक को साधकर अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का प्रयास करते दिख रहे हैं। ऐसे में राकेश टिकैत का सपा के प्रति अगर रवैया उदासीन होता है तो इसका बड़ा संदेश जाएगा। इससे अखिलेश यादव की यूपी चुनाव 2027 को लेकर चल रही रणनीति पर असर पड़ना स्वाभाविक है।

क्या बदल रही राजनीतिक तस्वीर?

राकेश टिकैत ने जिस प्रकार से मायावती की तारीफ की है, उसको लेकर अलग ही राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। राजनीतिक जानकारों का दावा है कि मायावती के जरिए राकेश टिकैत सत्ता के निकट आए बिना अपनी अलग राजनीति को रंग दे सकते हैं। दरअसल, यूपी की राजनीति में तीन ध्रुवीय समीकरण बनने पर फायदा सीधे भाजपा को मिलता रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 से यूपी चुनाव 2022 तक मायावती के मजबूत होने पर सपा-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला नहीं हो पाता था।

तीन ध्रुवीय राजनीति की स्थिति में भाजपा हमेशा फायदे में रही। हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा काफी पिछड़ती दिखी। पार्टी का वोट शेयर भी 10 फीसदी के करीब पहुंच गया। इस कारण भाजपा-सपा में सीधा मुकाबला हुआ। यह भाजपा के लिए कई स्थानों पर मुश्किलें बढ़ाने वाला रहा। राकेश टिकैत के बयान यूपी की राजनीति में नए बदलाव के संकेत देते दिख रहे

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