अयोध्या में धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन—आस्था से आगे बढ़कर राजनीतिक-सांस्कृतिक बदलाव का संकेत-

BY- PRAKHAR SHUKLA 

धार्मिक रस्म नहीं , सभ्यता पुर्नजागरण के रूप में प्रस्तुत करती ध्वजारोहण की परंपरा-

अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक नए सांस्कृतिक और राजनीतिक युग की घोषणा माना जा रहा है। धर्मध्वजा का यह आरोहण जहां आस्था और परंपरा का प्रतीक है, वहीं भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दीर्घकालिक एजेंडे को भी और मजबूत करता है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि सरकार इस घटना को केवल धार्मिक रस्म के रूप में नहीं, बल्कि एक सभ्यतागत पुनर्जागरण के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

धार्मिक संरक्षक मॉडल से जोड़ती दिखी- प्रधानमंत्री की उपस्थिति

 इस आयोजन ने सत्ता, संस्कृति और आध्यात्मिक narrative को एक साथ जोड़कर ऐसी राजनीतिक छवि तैयार की है, जिसमें सरकार खुद को केवल प्रशासक नहीं, बल्कि धर्म-संरक्षक और सांस्कृतिक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करती दिख रही है। नरेंद्र मोदी की उपस्थिति इसे राष्ट्रीय नेतृत्व के "धार्मिक संरक्षक मॉडल" से जोड़ती है, जबकि योगी आदित्यनाथ राज्य स्तर पर सांस्कृतिक कठोरता के प्रतीक के रूप में उभरते हैं।

विपक्ष के पास नहीं है इस आलोचना का सुरक्षित स्पेस-

यह कदम विपक्ष के लिए भी बड़ी चुनौती बन गया है। धर्मध्वजा का पुनर्स्थापन सत्तारूढ़ दल की वैचारिक विजय का क्षण है, जबकि विपक्ष के पास न इस प्रतीक की आलोचना का सुरक्षित स्पेस है, न कोई वैकल्पिक सांस्कृतिक कथात्मकता है।  परिणामस्वरूप राजनीतिक संघर्ष अब सांस्कृतिक धरातल पर एकतरफा प्रतीत होने लगा है। आगामी चुनावों के संदर्भ में भी यह आयोजन बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह केवल रणनीति नहीं, बल्कि उस सामाजिक परिवर्तन का संकेत है जहां आस्था, पहचान और राष्ट्रवाद और अधिक मजबूती से एक दूसरे से जुड़ रहे हैं। 

प्रतीकों के साथ सामने आने पर करती हैं राजनीतिक चेतना को प्रभावित-

राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रसारण और आयोजन का पैमाना इसे एक नए सांस्कृतिक युग का उदय घोषित करता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी यह कदम भारत को एक (सभ्यतागत राष्ट्र) की धारणा के और करीब ले आता है, जहां सांस्कृतिक पहचान को विदेश नीति और ग्लोबल ब्रांडिंग का हिस्सा बनाया जा रहा है। सबसे बड़ा प्रभाव जनता के मानस पर पड़ रहा है—राम मंदिर से जुड़ी स्मृतियां और भावनाएं जब प्रतीकों के साथ सामने आती हैं, तो वे सीधे राजनीतिक चेतना को प्रभावित करती हैं। धर्मध्वजा का यह आरोहण इन भावनाओं को स्थायी राजनीतिक पूंजी में बदलता है, जो आने वाले वर्षों में चुनावी राजनीति में गहराई से असर डालेगी।

कुल मिलाकर, अयोध्या का यह क्षण मंदिर के शिखर पर ही नहीं, बल्कि भारत की सामूहिक राजनीतिक कल्पना के केंद्र में भी एक नई ध्वजा फहरा रहा है।

 

 

 

 

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