उत्तर प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री: राम नरेश यादव की राजनीतिक यात्रा

उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से जटिल और विविधताओं से भरी रही है। इस राजनीतिक परिदृश्य में कुछ नेता ऐसे भी हुए जिन्होंने अपनी सादगी, ईमानदारी और सरल स्वभाव से लोगों के दिलों में विशेष जगह बनाई। राम नरेश यादव ऐसे ही एक नेता थे, जिनके लिए कहा जाता था कि वे अपनी जेब में इस्तीफा लेकर घूमते थे। उनकी यह कहानी है यूपी के दसवें मुख्यमंत्री बनने तक के संघर्ष और समर्पण की।

राम नरेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1928 को आजमगढ़ जिले के आंधीपुर गांव में हुआ था। उनके पिता गया प्रसाद महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे, जिससे राम नरेश के राजनीतिक और सामाजिक विचारों पर भी गहरा असर पड़ा। उन्होंने वाराणसी के हिन्दू विश्वविद्यालय से बीए, एमए और एलएलबी की पढ़ाई की और छात्र संघ की राजनीति से जुड़कर अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। एक समय वे जौनपुर के नरेंद्रपुर इंटर कॉलेज में लेक्चरार भी रह चुके थे।

राम नरेश यादव की राजनीतिक यात्रा समाजवादी विचारधारा से प्रेरित थी। उन्होंने जाति-भेद को तोड़ने, किसानों की लगान माफी, समान शिक्षा और आमदनी-खर्च की सीमाओं जैसे मुद्दों पर कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। इसके कारण कई बार उन्हें गिरफ्तार भी होना पड़ा। 1975 से 1977 तक इमरजेंसी के दौरान वे आजमगढ़ और इलाहाबाद की जेलों में बंद रहे।

1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर निधौलीकलां से विधायक चुने जाने के बाद, राम नरेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। 23 जून 1977 को उन्होंने पद की शपथ ली और 27 फरवरी 1979 तक मुख्यमंत्री रहे। उनका कार्यकाल भले ही दो साल से कम रहा हो, लेकिन उनकी सादगी और ईमानदारी ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई। कहा जाता है कि वे अपने इस्तीफे के बाद रिक्शे से अपने घर लौटे थे, जो उनकी सरलता का प्रतीक था।

उनका मुख्यमंत्री काल राजनीतिक उतार-चढ़ाव से भरा रहा। जनता पार्टी में आंतरिक मतभेदों और आरएसएस से जुड़े कुछ सदस्यों के इस्तीफे के चलते उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। हालांकि इस दौरान उन्होंने समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को राज्यमंत्री बनने का अवसर दिया, जिन्हें बाद में नेताजी के नाम से भी जाना गया।

राम नरेश यादव की राजनीति में लोहिया की समाजवादी विचारधारा की छाप साफ देखी जा सकती है। उन्होंने अपने पूरे जीवन जाति, धर्म और आर्थिक भेदभाव से ऊपर उठकर सभी के लिए समानता का संदेश दिया। अपनी सादगी और निष्पक्षता के कारण उन्हें पूर्वांचल का गांधी भी कहा जाता था। बाद के वर्षों में उनका राजनीतिक सफर मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद तक पहुंचा, जहां उन्होंने 2011 से 2016 तक सेवा दी। हालांकि, उनके करियर पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे, जिसने उनकी छवि को प्रभावित किया।

22 नवंबर 2016 को राम नरेश यादव ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी सादगी, ईमानदारी और संघर्ष की कहानी आज भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में याद की जाती है। उनकी जीवन यात्रा यह साबित करती है कि राजनीति में भी सरलता और ईमानदारी के साथ सफलता पाई जा सकती है, भले ही रास्ता कठिन हो।

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