"कलम, आज उनकी जय बोल

BY CHANCHAL RASTOGI...

 

'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल शृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।

‘राष्ट्रकवि’ के रूप में समादृत और लोकप्रिय रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय ज़िले के सिमरिया ग्राम में एक कृषक परिवार में हुआ। अँग्रेज़ सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में रहे और उनके ख़िलाफ़ ही कविताएँ लिखते रहे।ओज, विद्रोह, आक्रोश के साथ ही कोमल शृंगारिक भावनाओं के कवि दिनकर की काव्य-यात्रा की शुरुआत हाई स्कूल के दिनों से हुई जब उन्होंने रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा प्रकाशित ‘युवक’ पत्र में ‘अमिताभ’ नाम से अपनी रचनाएँ भेजनी शुरू की। 1928 में प्रकाशित ‘बारदोली-विजय’ संदेश उनका पहला काव्य-संग्रह था। उन्होंने मुक्तक-काव्य और प्रबंध-काव्य—दोनों की रचना की। मुक्तक-काव्यों में कुछ गीति-काव्य भी हैं। कविताओं के अलावे उन्होंने निबंध, संस्मरण, आलोचना, डायरी, इतिहास आदि के रूप में विपुल गद्य लेखन भी किया। 

आइये अब आपको भी बताते हैं उनकी बेहद ही मशहूर कृति "कलम, आज उनकी जय बोल "की कुछ पंक्तियाँ;

 

जला अस्थियां बारी-बारी..चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल...कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे....तूफानों में एक किनारे,

जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल...कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएं..उगल रही सौ लपट दिशाएं,

जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल...कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा...क्या जाने इतिहास बेचारा,

साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल...कलम, आज उनकी जय बोल।

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