रज़ा पुस्तकालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 के उपलक्ष में योगोत्सव कार्याक्रम का प्रारंभ

रामपुर : रज़ा पुस्तकालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 के उपलक्ष में योगोत्सव कार्याक्रम का प्रारंभ हुआ। योगोत्सव के अंतर्गत आज वसुधैव योगः क्रिया एवं दर्शन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी प्रयागराज से प्रसिद्ध लेखक एवं चिन्तक श्री रविराज सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, इलाहबाद), अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रो. सैयद तारिक मुर्तजा, राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त शिक्षक रत्न जैन इंटर कॉलेज के प्रवक्ता श्री मुनीष चंद्र शर्मा, तथा पतंजलि योगपीठ, रामपुर की महामंत्री श्रीमती अनीता शुक्ला ने अपने विचार प्रस्तुत किए एवं निदेशक डॉ० पुष्कर मिश्र जी ने अध्यक्षीय उद्बोधन प्रस्तुत किया। तत्पश्चात दरबार हॉल में एक विशेष प्रदर्शनी योग यात्रा: शास्त्र, साधना और संस्कार का उद्घाटन किया गया।
संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि श्रीमती अनीता शुक्ला जिला महामंत्री, महिला पतंजली योग समिति रामपुर ने कहा कि योगासनों का अभ्यास विभिन्न रोगों में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। अनुसंधानों के अनुसार, वर्तमान में केवल 11 प्रतिशत लोग ही नियमित रूप से योग करते हैं. जबकि योग का मूल उद्देश्य समाज के हर व्यक्ति को निरोग और स्वस्थ बनाना है। श्री कृष्ण ने भी भगवद्गीता में कहा है कि यदि हम अपनी चेतनाओं के लिए कार्य करें तो निश्चित ही लाभ प्राप्त होगा। योग के विभिन्न आसनों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि आज के युग में तनाव हर व्यक्ति का साथी बन चुका है, ऐसे में सुखासन अत्यंत प्रभावी है। योग थायरॉयड जैसी सामान्य हो चुकी समस्या में भी अत्यंत सहायक है और हमारे चेहरे पर प्राकृतिक चमक लाता है, जिससे सौंदर्य में वृद्धि होती है। कपालभाति पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है, वहीं शीर्षासन (सर्वासन) को योग का राजा कहा गया है। योग का अभ्यास उच्च रक्तचाप, हृदय रोगों एवं पाचनतंत्र के लिए अत्यंत लाभकारी है। सम्पूर्ण आसनों का सार सूर्य नमस्कार में समाहित है। उन्होंने आग्रह किया कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट योग के लिए अवश्य निकालना चाहिए। योग न केवल शरीर को स्फूर्ति देता है, बल्कि मानसिक चेतना को ऊर्जा प्रदान करता है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि श्री मुनीश चन्द्र शर्मा, प्रवक्ता हिन्दी, जैन इंटर कॉलेज, रामपुर ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि पूर्वकाल में हमारे समाज में यह धारणा प्रचलित थी कि योग केवल ऋषि-मुनियों की साधना है, परंतु आज पूरा विश्व योग के लाभों को भलीभांति जान चुका है। महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्रों के माध्यम से यह ज्ञानजनमानस तक पहुँचा है। कहा कि योग ने मानव को प्रातःकाल उठना सिखाया, क्योंकि जल्दी उठने से कार्य करने के लिए अधिक समय प्राप्त होता है। प्रातः समय वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है, जिससे मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है और व्यक्ति सफलता की ओर अग्रसर होता है। योग के नियमित अभ्यास से जीवन में चमत्कारी परिणाम देखने को मिलते हैं - आंतरिक अंगों में संतुलन, तनाव से मुक्ति, और रोगों से बचाव संभव होता है। परंतु, योग करने की सही विधि आना आवश्यक है। इसे ज्ञानी प्रशिक्षक से सीखना चाहिए। योग करते समय नियत प्रोटोकॉल का पालन करते हुए प्रत्येक क्रिया को सही ढंग से करें, जिससे शरीर का प्रत्येक अंग उससे लाभान्वित हो सके। इस अवसर पर प्रो० सैयद तारिक मुर्तजा, शारीरिक शिक्षा विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने पावर पॉइन्ट प्रेजेन्टेशन के माध्यम से योग के बारे में सभी को बताया। उन्होंने कहा कि योग हज़ारों सालों से हमारे साथ है। योग मानव उत्थान के लिए आया है। कहा कि दुनिया में कोई भी चीज़ बिना संदर्भ के नहीं होती है। भारतीय चिंतन परंपरा में यह विश्वास सदियों से जीवित है कि "सर्वे भवन्तु सुखिनः" यानि की सभी सुखी हों, सभी निरोग हों, और सभी को शांति मिले। अंहिसा से वसुधैव कुटुम्बकम् तक की यात्रा आत्मा से ब्रह्मांड तक की यात्रा है जहां हम केवल मानव नहीं, बल्कि मानवता को प्राथमिकता देते हैं। यह केवल भारत की धरोहर नहीं, बल्कि समस्त विश्व के लिए एक अमूल्य संदेश है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री रविराज सिंह, लेखक एवं चिन्तक, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, इलाहबाद ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैसा हमारा दर्शन होता है वैसा हमारा लक्ष्य होता है और जैसा हमारा लक्ष्य होता है वैसे हमारे साधन होते हैं, जैसे साधन होते हैं वैसी ही हमारी साधना होती है। आज सबसे बड़ी समस्या है कि जीवन में दर्शन गायब है। दर्शन को हमने केवल बौद्धिक विलास समझ रखा है। कहा कि प्रत्येक दर्शन के मूल में हमारे यहां ऋषि थे। सभी दर्शन यह मानते है कि हमारे जीवन में दुख का जो कारण है वह अज्ञानता है, और जीवन में सुख का मूल कारण ज्ञान है। योग की बहुत सी विधाएं हैं उन सारी विधायों को चार भागों में बांटा गया है ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग और राज योग। जीवन का कोई भी कार्य बिना ज्ञान के सम्भव नहीं है। ज्ञान हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यक्ता है। ज्ञान कर्म के प्रभाव को बड़ा देता है और ज्ञान कर्म की, विधि को, प्रक्रिया को, और उसके क्रम को आपको बोध कराता है। कहा कि भक्ति योग और कर्मयोग दोनों एक हैं जब क्रिया पर दृष्टि होती है तो हम कर्म योग कहते हैं और जब भाव पर दृष्टि होती है तो हम उसे भक्ति योग कहते हैं। इस अवसर पर रामपुर रज़ा पुस्तकालय के निदेशक डॉ० पुष्कर मिश्र जी ने कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का नाम हमने रखा है वसुधैव योगः क्रिया एवं दर्शन। इसके विभिन्न आयामों को लक्षित कर पाना एक संगोष्ठी में संभव नहीं है। मनु महाराज ने कहा था 'पृथिव्याम् सर्व मानवः' यानि की कोई भी विद्या चाहे वह योग हो, सांख्य हो, न्याय हो, सभी विद्याएं पृथिव्याम् सर्व मानवः हैं, यानि कि पृथ्वी के समस्त मानवों के लिए और जो पृथ्वी के समस्त मानवों के लिए है वही सही मायनों में वसुधैव है यानि की पूरी पृथ्वी का है और योग निश्चित तौर पर वसुधैव है इसीलिए हमने इसे वसुधैव योग कहा। दूसरा पदबंध इसमें क्रिया है। योग का क्रिया से बहुत गहरा सम्बन्ध है। कहा कि ऋग्वेद के ऋषि ने जब इस जगत को देखा तो उसने साक्षी भाव से दर्शन किया कि जो कुछ भी दृश्य है और अदृश्य है वह सब क्या है यह मूल प्रश्न है। इस मनन को आगे ले जाते हुए उन्होंने कहा सम्पूर्ण जगत दृश्य अदृश्य सब यज्ञ है, यज्ञ का न आदि है न अन्त है, वो कब कहां कैसे आरम्भ हुआ कोई नहीं जानता। हिरण्यगर्भ सूक्त में स्पष्ट रूप से कहा गया कि वह यज्ञ कौनसा है जिस यज्ञ से यज्ञ की उत्पत्ति हुई। यह मूल धारणा भिन्न-भिन्न रूप लेती हुई सम्पूर्ण पृथ्वी में व्याप्त हुई। अब जो दृश्ट है जो अदृश्ट है उसको देखने वाला दृश्टता यानि की ऋषि, ऋषि को दृश्टता कहा गया उसने बहुत से दर्शन किए और उनको पृथ्वी के समस्त मानवों के लिए शब्दों में पदबंध करके हम सब के लिए उपलब्ध करवाया। उसी में से एक विद्या योग की है। योग एक यज्ञ है। आज विज्ञान भी इस बात को कह रहा है। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती निदा फरहीन ने किया एवं अंत में सभी का धन्यवाद व्यक्त किया। इस अवसर पर शहर के गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
रिपोर्टर : राजू सिंह
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