क्या है अखाड़ा, कैसे हुई इसकी शुरुआत

अखाड़ा महाकुंभ का विशेष आकर्षण रहा है. कुंभ में आस्था के प्रतीक माने जाने वाले अखाड़े काफी महत्वपूर्ण माने जाते है. कुंभ में आने वाले साधु-संतों के समूहों को ही अखाड़ा कहा जाता है. ये भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का कई वर्षों से हिस्सा रहे हैं. 

अखाड़ा साधुओं का वह दह है जो शास्त्र के साथ शस्त्र विद्या में भी पारंगत होते हैं. शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है.

अखाड़े बनाने के पीछे का कारण ये माना जाता है कि जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ. अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ. सिर्फ यही नहीं इन अखाड़ों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन अखाड़ों का उद्देश्य धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करना और  धर्म और पवित्र स्थलों की रक्षा करना था.

अखाड़े की स्थापना आदि शंकराचार्य ने सदियों पहले बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रसार को रोकने और मुगलों के आक्रमण से हिंदू संस्कृति को बचाने के लिए स्थापना की थी.  जिसमें आदि शंकराचार्य ने शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े बनाए थे. इसमें  साधुओं को योग, अध्यात्म के अलावा शस्त्रों की शिक्षा दी जाती है.

इन अखाड़ों की अपनी एक व्यवस्था होती है. जिसका संचालन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष करते हैं. अलग-अलग अखाड़ों की अगुवाई करने वालों को महामंडलेश्वर कहा जाता है. 

ऐसे साधक जो साधु बनना चाहते हैं, उन्हें अखाड़े में रहकर अपनी सेवाएं देनी होती है. ये समय 6 महीने से लेकर 6 साल तक भी हो सकता है. इस दौरान उन्हें कई तरह की कठिन तपस्या से गुज़रना पड़ता है, जिसमें उन्हें अपना सांसारिक जीवन छोड़कर खुद का पिंडदान करना पड़ता है, अखाड़ा हर एक उस व्यक्ति का जो  साधु बनना चाहते हैं उनका इतिहास, पारिवारिक बैकग्राउंड और उसके चरित्र की जांच करता है. इन सब के बाद ही उसे अखाड़े के गुरु से कुंभ में दीक्षा मिलती है जिसके बाद उसे अखाड़ा में शामिल किया जाता है. 

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