आखिर क्यों नागा साधु करते हैं पहले 'अमृत स्नान'
144 साल बाद आए इस महाकुंभ में अद्भुत संयोग बना है, इसका साक्षी हर कोई बनना चाहता है। अमृत या शाही स्नान के लिए करोड़ों भक्त प्रयागराज पहुंचे हैं। इन सबके बीच नागा साधुओं और अखाड़ों की भी खूब चर्चा हो रही है, जहां वे सबसे पहले अमृत स्नान करते हैं. महाकुंभ मेले का आकर्षण का केंद्र अमृत स्नान के लिए सबसे पहले साधु को पहले स्नान करने के पीछे एक विशेष कारण है. ये परम्परा काफी पुरानी है. ऐसा करने के पीछे इसके कई मान्यताएं हैं.
माना जाता है कि कुंभ में पहले स्नान करने को लेकर हमेशा से विवाद होते रहे हैं. इसको लेकर नागा साधुओं और वैरागी साधुओं के बीच खूनी जंग हुई है. साल 1760 में हुए हरिद्वार कुंभ के दौरान पहले स्नान को लेकर नागा और वैरागी आपस में लड़ गए. दोनों की ओर से खूब तलवारें चलीं इस जंग में सैकड़ों वैरागी संत मारे गए थे.
इसके बाद साल 1789 के नासिक कुंभ में भी यही स्थिति देखने को मिली. जिससे परेशान होकर वैरागियों के चित्रकूट खाकी अखाड़े के महंत बाबा रामदास ने पुणे के पेशवा दरबार में शिकायत की. जिसके बाद साल 1801 में पेशवा कोर्ट ने नासिक कुंभ में नागा और वैरागियों के लिए अलग-अलग घाटों की व्यवस्था करने का आदेश दिया. नागाओं को त्र्यंबक में कुशावर्त-कुंड और वैष्णवों को नासिक में रामघाट दिया गया. उज्जैन कुंभ में वैरागियों को शिप्रा तट पर रामघाट और नागाओं को दत्तघाट दिया गया.
वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार , नागा साधु भोले बाबा के अनुयायी माने जाते हैं और वह भोले शंकर की तपस्या और साधना की वजह से इस स्नान को नागा साधु सबसे पहले करने के अधिकारी माने गए। यनागा साधुओं के पहले 'अमृत स्नान ' की ये परंपरा तभी से चली आ रही है.
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