दाह संस्कार के 3 दिन बाद ही अस्थियां क्यों इकट्ठा की जाती हैं?

हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद अंत्येष्टि संस्कार यानी दाह संस्कार किया जाता है, जो कि 16 संस्कारों में अंतिम और बहुत महत्वपूर्ण संस्कार है। लेकिन इस संस्कार के तीन दिन बाद अस्थियों को एकत्र कर पवित्र नदी में विसर्जित करने की परंपरा क्यों है? इसके पीछे गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक कारण है।  अस्थियों को अंतिम संस्कार (विशेषकर हिंदू रीति-रिवाजों में) के लगभग तीन दिन बाद एकत्र करने की परंपरा का धार्मिक, आध्यात्मिक और व्यावहारिक तीनों दृष्टिकोणों से महत्व है।

 1. आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए
अस्थि विसर्जन का अर्थ है — मृतक की जली हुई हड्डियों और राख को पवित्र नदी में प्रवाहित करना।

ऐसा करने से माना जाता है कि आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है।

दाह संस्कार के तीन दिन बाद आत्मा की यात्रा का पहला पड़ाव पूरा होता है, इसलिए यह समय खास माना जाता है।

2. गरुड़ पुराण और शास्त्रों का मत
गरुड़ पुराण के अनुसार, अस्थियाँ तीसरे, सातवें या नवें दिन एकत्र की जा सकती हैं।

लेकिन ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तीसरा दिन सबसे उपयुक्त होता है क्योंकि:

दाह संस्कार में बोले गए मंत्रों की ऊर्जा तीन दिन तक बनी रहती है।

इसके बाद अस्थियों में आकाश तत्व की तरंगें कम होने लगती हैं।

 3. नकारात्मक शक्तियों से बचाव
अगर अस्थियों को ज्यादा देर तक श्मशान में छोड़ा जाए, तो ऐसी मान्यता है कि उन पर नकारात्मक ऊर्जा या अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव हो सकता है।

इसलिए उन्हें जल्दी (तीन दिन के भीतर) सुरक्षित और पवित्र रूप से उठाना जरूरी होता है।

 4. प्रकृति में पांच तत्वों का समर्पण
मानव शरीर पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से मिलकर बना होता है।

दाह संस्कार के समय शरीर अग्नि में विलीन होता है, और फिर अस्थियाँ जल में विसर्जित की जाती हैं — जिससे शरीर पूरी तरह से प्रकृति में समर्पित हो जाता है।

तीसरे दिन परिजन श्मशान में जाकर हड्डियाँ चुनते हैं और उन्हें बहते जल में धोकर मिट्टी या धातु के बर्तन में रखते हैं।

फिर उचित तिथि देखकर पवित्र नदी (जैसे गंगा, नर्मदा, गोदावरी आदि) में विसर्जित किया जाता है।

आत्मा की यात्रा का एक अहम चरण पूरा होता है, मंत्रों की ऊर्जा का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है, और उन्हें नकारात्मक प्रभावों से बचाकर समय पर पवित्र जल में प्रवाहित करना आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए आवश्यक है।

हिंदू धर्म में माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा कुछ समय तक पृथ्वी लोक में रहती है और फिर धीरे-धीरे अपने अगले गंतव्य की ओर बढ़ती है।अंतिम संस्कार के बाद तीसरे दिन आत्मा की यात्रा की एक महत्वपूर्ण अवस्था पूरी होती है, और तब अस्थियों को एकत्र कर ‘अस्थि-संचय’ (अस्थि संग्रह) की क्रिया की जाती है ताकि उन्हें पवित्र नदी में विसर्जित किया जा सके। यह प्रक्रिया आत्मा की शांति और मोक्ष की दिशा में एक कदम मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि जब तक अस्थियों का विसर्जन नहीं होता, तब तक आत्मा पूर्ण रूप से मुक्त नहीं होती।तीसरे दिन अस्थि-संचय कर लेना पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण जैसे अगले कर्मों की तैयारी की शुरुआत होती है। गंगा, नर्मदा, यमुना, गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में अस्थियों का विसर्जन आत्मा की शुद्धि और मुक्ति के लिए किया जाता है। अग्नि संस्कार के बाद शरीर की हड्डियाँ (अस्थियाँ) पूरी तरह ठंडी और सुरक्षित रूप से एकत्र करने योग्य लगभग 2-3 दिन में होती हैं।

तीसरे दिन अस्थि-संचय करना एक संतुलन है — धार्मिक मान्यताओं, आत्मा की यात्रा, और भौतिक प्रक्रिया के बीच। यह कर्म व्यक्ति की अंतिम विदाई को पूर्णता की ओर ले जाता है।

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