"क्यों नहीं होती नरसिंह पूजा सुबह? जानिए शास्त्रों का रहस्य"

भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा प्रायः शाम के समय की जाती है, और सुबह पूजा न करने के पीछे कुछ धार्मिक, पौराणिक और तांत्रिक कारण होते हैं। इसका मूल कारण उनके अवतार की प्रकृति और प्रकट होने के समय से जुड़ा हुआ है। नरसिंह भगवान की पूजा एक बहुत ही शक्तिशाली और रक्षात्मक पूजा मानी जाती है। ये विशेष रूप से नकारात्मक ऊर्जा, भय, शत्रु बाधा, और अनिष्ट शक्तियों से रक्षा के लिए की जाती है। आइए इसके बारे में विस्तार से समझते हैं:
नरसिंह अवतार के समय का महत्व:
नरसिंह अवतार का प्राकट्य संध्या समय (दिन और रात के संधिकाल) में हुआ था, जब न वह दिन था, न रात। यह भगवान विष्णु ने हिरण्यकशिपु के वध के लिए शास्त्रों के नियमों के अनुसार "ना दिन, ना रात", "ना घर, ना बाहर", "ना जीव, ना मृत", "ना मनुष्य, ना पशु" जैसी शर्तों का पालन करते हुए लिया था।इसलिए नरसिंह जी का पूजन संध्या या रात्रि के समय करना अधिक उपयुक्त और शुभ माना जाता है।
नरसिंह स्वरूप की उग्रता:
नरसिंह भगवान का रूप उग्र (भयानक) है — आधा सिंह, आधा मनुष्य। उनका यह रूप संहारक है, और इस रूप की पूजा में विशेष सावधानी बरती जाती है।
सुबह का समय देवताओं की शांत, सात्त्विक पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। जबकि उग्र रूपों की पूजा तांत्रिक विधि, संयम, और विशेष समय पर की जाती है — जैसे संध्या, निशा काल या रात्रि।
तांत्रिक मान्यता:
तांत्रिक पूजा पद्धतियों में नरसिंह का पूजन एक रक्षात्मक क्रिया मानी जाती है, जिससे बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं।
ऐसी पूजा का समय रात्रिकाल या संधिकाल ही उपयुक्त माना गया है। सुबह के समय उग्र देवता की पूजा करने से अनावश्यक उग्रता या अशांति उत्पन्न हो सकती है, ऐसी मान्यता है।हालाँकि नरसिंह जयंती पर दिनभर विशेष पूजन किया जाता है (विशेषकर व्रत और पाठ)। लेकिन फिर भी मूल आराधना संध्या या रात में ही केंद्रित रहती है।
सुबह नरसिंह भगवान की पूजा न करना शास्त्रीय और तांत्रिक परंपराओं से जुड़ा है क्योंकि:
- उनका स्वरूप उग्र है।
- उनका प्रकट समय संध्या है।
- उनकी पूजा विशेष विधियों से होती है जो सुबह के शांत समय में उपयुक्त नहीं मानी जाती।
भगवान नरसिंह की पूजा विधि (संध्या कालीन)
पूजन का समय:
- संध्याकाल (शाम को सूर्यास्त के बाद) — यह समय नरसिंह अवतार के प्रकट होने के समय से मेल खाता है।
- यदि विशेष दिन हो, जैसे नरसिंह चतुर्दशी या नरसिंह जयंती, तो व्रत दिनभर और पूजा संध्या को होती है।
पूजा सामग्री:
- पीला वस्त्र
- फूल (विशेषकर लाल फूल)
- धूप, दीप, घी
- नारियल, पंचामृत
- तुलसी के पत्ते
- पीली मिठाई (या बेसन से बनी)
- श्रीनरसिंह यंत्र (यदि हो सके तो)
- शुद्ध जल, अक्षत (चावल), कुंकुम, हल्दी
पूजन विधि (सरल रूप):
- शुद्धि: स्नान कर, पूजा स्थान और स्वयं को शुद्ध करें।
- दीप प्रज्वलन: दीपक जलाकर भगवान विष्णु या नरसिंह की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
ध्यान:
"उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नरसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युम नमाम्यहम्॥"
– इस मंत्र से भगवान का ध्यान करें।
अर्घ्य, फूल, अक्षत अर्पण करें।
- नरसिंह कवच या विष्णु सहस्रनाम या नरसिंह स्तोत्र का पाठ करें।
- प्रार्थना करें — विशेष रूप से भय, रोग, शत्रु बाधा से रक्षा हेतु।
- आरती करें – "जय नरसिंह देव जय नरहरी" आरती गाई जाती है।
- प्रसाद वितरण।
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