वट सावित्री व्रत: सुहागिनों के लिए संपूर्ण पूजा विधि और महत्त्व

वट सावित्री व्रत का महत्त्व सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत विशेष और पवित्र माना जाता है। यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पति-पत्नी के प्रेम, निष्ठा और दीर्घायु वैवाहिक जीवन की कामना का प्रतीक है। सुहागिन महिलाओं के इस व्रत की महत्वता बढ़ जाती है. आईये जानते है इस दिन सुहागिन महिलाओं को व्रत रखने के लिए क्या करना चाहिए- 

 वट सावित्री व्रत का महत्त्व सुहागिनों के लिए:
1. पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना:
इस दिन महिलाएं व्रत रखकर भगवान ब्रह्मा, यमराज और वट वृक्ष की पूजा करती हैं ताकि उनके पति को दीर्घायु, स्वास्थ्य और सफलता प्राप्त हो।

2. सावित्री-सत्यवान की कथा से प्रेरणा:
व्रत का आधार सावित्री की कथा है, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, भक्ति और चतुराई से अपने मृत पति को यमराज से वापस पा लिया। यह कथा महिलाओं को धैर्य, समर्पण और शक्ति का प्रतीक बनाती है।

3. वैवाहिक जीवन की मजबूती:
यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास, प्रेम और पारस्परिक सम्मान को और गहरा करता है। सुहागिन स्त्रियाँ इस दिन अपने सोलह श्रृंगार में सजकर पूजन करती हैं, जिससे सौभाग्य और खुशहाल गृहस्थ जीवन का प्रतीक मिलता है।

4. परिवार में सुख-समृद्धि:
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से सिर्फ पति नहीं, पूरे परिवार पर शुभ प्रभाव पड़ता है और घर में समृद्धि, शांति और स्वास्थ्य बना रहता है।

5. आध्यात्मिक लाभ और आत्मबल की वृद्धि:
व्रत, तपस्या और पूजा से महिलाओं को आत्मिक शांति और आत्मबल प्राप्त होता है। यह व्रत स्त्री की आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी बनता है।

वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाओं को विशेष रूप से कुछ नियमों, पूजन विधियों और परंपराओं का पालन करना चाहिए। यह व्रत नारी के सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। 

वट सावित्री व्रत पर सुहागिन महिलाओं को क्या करना चाहिए

ब्रह्ममुहूर्त में उठें और शुद्ध होकर स्नान करें। स्वच्छ और लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें। सोलह श्रृंगार करें- यह दिन सौभाग्य का प्रतीक है, इसलिए स्त्रियाँ सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी, बिछिया आदि से सोलह श्रृंगार करती हैं। भगवान ब्रह्मा, यमराज और सावित्री-सत्यवान का स्मरण करके व्रत का संकल्प लें – "मैं अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सौभाग्य के लिए यह व्रत कर रही हूँ।"वट वृक्ष (बरगद) की पूजा करें- यदि संभव हो तो वट वृक्ष के नीचे जाकर पूजा करें, वरना घर पर वट वृक्ष की तस्वीर या मिट्टी का प्रतीक बनाकर भी पूजा कर सकती हैं। पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत (मौली) लपेटें और सात बार परिक्रमा करें।

जल, रोली, अक्षत, फूल, फल, मिठाई, पान-सुपारी आदि अर्पित करें। दीपक और धूप जलाकर पूजा करें।व्रत के बाद पति के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें। यह सौभाग्यवती स्त्री का कर्तव्य और सम्मान का भाव माना जाता है।व्रत का पारण परंपरा अनुसार करें – कुछ महिलाएं शाम को फलाहार करती हैं, कुछ अगले दिन निर्जल व्रत का पारण करती हैं।

इस दिन क्या नहीं करना चाहिए:

  • झूठ बोलना, कटु वचन कहना या किसी का अपमान करना वर्जित है।
  • बाल धोना और बाल काटना वर्जित होता है।
  • पति से बहस या कलह से बचें।

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