नारली पूर्णिमा कब है? जानें पूजा मुहूर्त, विधि और स्वादिष्ट नारियल व्यंजन

इस साल नारली पूर्णिमा 9 अगस्त, शनिवार को मनाई जाएगी। यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को आता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। आईये जानते हैं पूजा मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में-
पूजा मुहूर्त
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 8 अगस्त 2025 को रात 09:33 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 अगस्त 2025 को रात 07:11 बजे
- पूजन का श्रेष्ठ समय: 9 अगस्त को सुबह 06:00 से 10:00 बजे तक (स्थानीय समय अनुसार थोड़ा अंतर हो सकता है)
नारली पूर्णिमा की पूजा विधि
स्नान और शुद्धि:
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान तैयार करें:
घर या समुद्र किनारे पूजा का स्थान स्वच्छ करें। लकड़ी के पाट पर पीला कपड़ा बिछाएं।
नारियल की स्थापना:
एक या तीन नारियल को कलश या थाली में रखें। इन पर हल्दी, कुमकुम, चावल चढ़ाएं।
वरुण देवता की प्रार्थना करें:
“ॐ वरुणाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए जल या नारियल को समुद्र की दिशा में अर्पित करें।
नारियल का विसर्जन:
समुद्र तट पर जाकर नारियल को जल में प्रवाहित करें। (अगर समुद्र न हो तो किसी नदी या जल स्रोत में करें)
रक्षा सूत्र बाँधें:
यजुर्वेद मंत्रों के साथ रक्षा सूत्र (कलावा) बाँधा जाता है।
नारली पूर्णिमा का महत्व:
नारली पूर्णिमा मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गोवा और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में मनाई जाती है।इसे रक्षा बंधन और श्रावणी के साथ भी जोड़ा जाता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य समुद्र की पूजा और कोकण क्षेत्र के मछुआरे समुदाय द्वारा नारियल अर्पण करना होता है।इस दिन समुद्र देवता को शांत रखने और समुद्री यात्रा में सुरक्षा के लिए नारियल चढ़ाया जाता है।यह दिन समुद्र में नवीन मछली पकड़ने के मौसम की शुरुआत को भी दर्शाता है।
पारंपरिक अनुष्ठान और रीति-रिवाज:
- समुद्र में नारियल अर्पण करना: मछुआरे और तटीय समुदाय समुद्र में जाकर नारियल प्रवाहित करते हैं।
- रक्षा सूत्र बांधना: ब्राह्मणों द्वारा यजुर्वेद का पाठ कर रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
- श्रावणी उपाकर्म: इस दिन कई ब्राह्मण और द्विज समुदाय श्रावणी संस्कार या उपाकर्म करते हैं।
- पारंपरिक भोजन: खासतौर पर नारियल से बनी मिठाइयाँ और व्यंजन जैसे नारळाची वडी, नारियल की खीर आदि बनाए जाते हैं।
नारली पूर्णिमा का इतिहास और पौराणिक संदर्भ:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नारली पूर्णिमा पर समुद्र के देवता वरुण देव की पूजा की जाती है।
यह त्योहार यह भी दर्शाता है कि मानव और प्रकृति के बीच संतुलन को बनाए रखने के लिए आभार प्रकट करना आवश्यक है।यह दिन रक्षा बंधन के पर्व के साथ मनाया जाता है, जहाँ बहनें भाइयों को राखी बांधती हैं।
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