पितृ पक्ष 2025: ग्रहण में श्राद्ध करना शुभ है या वर्जित? जानिए

हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। यह 15 दिवसीय अवधि उन पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए समर्पित होती है। इस दौरान परिजन श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण और अर्पण करते हैं, जिससे परिवार में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। यदि इस समय पूर्वजों का स्मरण और श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा को पूर्ण मुक्ति नहीं मिलती।

लेकिन इस बार 2025 में पितृ पक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण से होगी, जबकि इसका समापन सूर्य ग्रहण से होगा। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि ग्रहण के दौरान श्राद्ध किया जा सकता है या नहीं।

पितृ पक्ष की तिथि 2025
शुरुआत: 07 सितंबर 2025 (भाद्रपद पूर्णिमा, चंद्र ग्रहण के साथ)
समाप्ति: 21 सितंबर 2025 (अश्विन अमावस्या, सूर्य ग्रहण के साथ)

इस दौरान पितृ पृथ्वी पर आते हैं और अपने पोतों-पोतियों के पुण्य कर्मों का लाभ लेते हैं।

चंद्र ग्रहण और पितृ पक्ष की शुरुआत
इस साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण 07 सितंबर को भारत में दिखाई देगा। ग्रहण रात 9:57 बजे शुरू होकर 08 सितंबर की सुबह 1:27 बजे तक रहेगा। इसे ब्लड मून भी कहा जाता है।

सूतक काल ग्रहण से लगभग 9 घंटे पहले शुरू होगा, यानी दोपहर 12:57 बजे तक श्राद्ध, तर्पण और अन्य धार्मिक कर्म करने से बचना चाहिए।

सूतक काल में न करें ये काम:

  • श्राद्ध या पिंडदान करना
  • ब्राह्मण को भोजन कराना
  • भोजन पकाना या मंदिर जाना

ग्रहण समाप्ति के बाद ही पितरों के निमित्त दान और श्राद्ध करना शुभ माना गया है।

सूर्य ग्रहण और पितृ पक्ष का समापन
21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण लगेगा। यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इसका सूतक काल नहीं माना गया।
इसलिए इस दिन श्राद्ध और तर्पण करना पूरी तरह से शुभ है।साथ ही, इस दिन दान और पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व है।

सावधानी:
ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए कुछ विशेष सावधानियाँ रखी जाती हैं। सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती घर से बाहर न निकलें और डिलीवरी की योजना न बनाएं।
पितृ पक्ष का पहला दिन (07 सितंबर): चंद्र ग्रहण और सूतक काल के कारण श्राद्ध और तर्पण ग्रहण समाप्ति के बाद करें।
पितृ पक्ष का आखिरी दिन (21 सितंबर): सूर्य ग्रहण के बावजूद श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं।इस प्रकार, ग्रहण के दौरान सही समय और मुहूर्त का ध्यान रखकर किए गए पितृपक्ष के कर्म पूर्वजों को प्रसन्न करते हैं और उनके मोक्ष में सहायक होते हैं।

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