Chhath Puja 2025: कोसी भरने की परंपरा का अर्थ, महत्त्व और वैज्ञानिक वजह

छठ पूजा 2025 का पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाएगा।इस पर्व की हर विधि का अपना एक विशेष अर्थ है, लेकिन इनमें से एक परंपरा “कोसी भरने” की है, जो संध्या अर्घ्य के दिन निभाई जाती है।यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी जुड़ी हुई है।आइए जानते हैं, कोसी क्यों भरी जाती है, इसका महत्त्व, और इसके पीछे धार्मिक व वैज्ञानिक कारण क्या हैं।

कोसी भरने का धार्मिक महत्त्व

मन्नत पूरी होने पर आभार व्यक्त करना:
जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती है — जैसे संतान की प्राप्ति, स्वास्थ्य लाभ या सफलता — तो वह छठी मैया के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए कोसी भरता है।यह आस्था, समर्पण और धन्यवाद का प्रतीक माना जाता है।

सुख-समृद्धि और संतान की रक्षा के लिए:
कोसी भरने की परंपरा घर में सुख-समृद्धि, संतान की लंबी उम्र और परिवार की भलाई के लिए की जाती है।माना जाता है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति बनी रहती है।

कृतज्ञता और भक्ति का प्रतीक:
यह परंपरा छठी मैया और सूर्यदेव के प्रति समर्पण का प्रतीक है, जो भक्त और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखती है।

कोसी भरने का वैज्ञानिक महत्त्व

प्रकृति के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व:कोसी में लगाए जाने वाले पाँच गन्ने — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — इन पाँच तत्वों के प्रतीक हैं।यह जीवन में संतुलन, सामंजस्य और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं।

सूर्य की ऊर्जा और स्वास्थ्य लाभ:
छठ पूजा के समय सूर्य की पराबैंगनी (UV) किरणें अधिक प्रभावी होती हैं।सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शरीर में विटामिन D का संतुलन बनाए रखती है, जिससे हड्डियाँ मज़बूत होती हैं और प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ती है।

प्राकृतिक और मानसिक शुद्धि:
मिट्टी, जल और सूर्य के संपर्क से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
कोसी सेवना (पूरी रात लोकगीत गाना) मानसिक शांति और सामूहिक एकता का भी प्रतीक है।

कोसी भरने की विधि

गन्नों से मंडप (छत्र) बनाना:
पाँच गन्नों को बाँधकर एक मंडप जैसा छत्र बनाया जाता है।यह छत्र परिवार के ऊपर छठी मैया की कृपा और सुरक्षा का प्रतीक होता है।

मिट्टी का हाथी और कलश स्थापित करना:
मंडप के बीच में मिट्टी का हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर कलश स्थापित किया जाता है।हाथी शक्ति का और कलश समृद्धि का प्रतीक है।

दीपक जलाना और पूजन सामग्री सजाना:
कोसी के अंदर ठेकुआ, फल, नारियल, दीपक आदि सजाए जाते हैं।
दीपक जलाकर सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना की जाती है।

कोसी सेवना (रात्रि जागरण):
इस अवसर पर पूरे परिवार के लोग पूरी रात जागकर लोकगीत गाते हैं, जिसे कोसी सेवना कहा जाता है।यह भक्ति, आनंद और एकता का प्रतीक माना जाता है।

कोसी कब भरी जाती है?

  • दिन: छठ पूजा का तीसरा दिन
  • अवसर: संध्या अर्घ्य यानी सूर्यास्त के समय
  • स्थान: घर की छत या आँगन में, पारंपरिक विधि से
  • अगले दिन प्रातःकाल उषा अर्घ्य (सूर्योदय अर्घ्य) के साथ छठ पर्व का समापन होता है।

कोसी भरने की परंपरा छठ पूजा का सबसे भावनात्मक और आध्यात्मिक पक्ष है।यह न केवल छठी मैया के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है, बल्कि प्रकृति, परिवार और विज्ञान के संतुलन का सुंदर उदाहरण भी है। इस परंपरा से जुड़ा हर तत्व — गन्ना, मिट्टी, दीपक, सूर्य और जल — हमें याद दिलाता है कि जीवन में ऊर्जा, आस्था और कृतज्ञता का संगम ही सच्ची पूजा है।

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