इस्लाम में हिजाब की अहमियत और नियम: आस्था, सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक
हाल ही में हिजाब को लेकर एक घटना ने देशभर में बहस छेड़ दी है। 15 दिसंबर 2026, सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र देने के दौरान एक मुस्लिम महिला डॉक्टर के चेहरे से हिजाब हटाने की कथित घटना सामने आई। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद लोगों ने कड़ी आलोचना की और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने माफी की मांग की।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि इस्लाम में हिजाब का क्या महत्व है और इससे जुड़े नियम क्या हैं।
इस्लाम में हिजाब की धार्मिक जिम्मेदारी
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जो अपने स्पष्ट नियमों और नैतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। हिजाब इस्लाम में केवल पहनावे का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह शालीनता, सम्मान और अल्लाह की आज्ञा का प्रतीक है।
इस्लाम में हया (संयम) को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है और यह जिम्मेदारी पुरुषों और महिलाओं—दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
पवित्र कुरान में हिजाब की अहमियत
पवित्र कुरान के अनुसार, ईमानदार पुरुषों को अपनी निगाहें नीची रखने और अपने गुप्तांगों की रक्षा करने का आदेश दिया गया है। इसे उनके लिए पवित्र और शुद्ध कार्य माना गया है।
इसी प्रकार, ईमानदार महिलाओं को भी अपनी निगाहें नीची रखने, अपनी लज्जा की रक्षा करने और अपने सौंदर्य व आभूषणों को गैर-जरूरी रूप से प्रदर्शित न करने का निर्देश दिया गया है। कुरान में महिलाओं को अपने सीने और सिर को ढकने की सलाह दी गई है और अपनी सुंदरता केवल अपने शौहर (पति) और करीबी रिश्तेदारों के सामने प्रकट करने की अनुमति दी गई है।
मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब के नियम
इस्लामिक शिक्षाओं और विद्वानों के अनुसार:
- मुस्लिम महिला को गैर-महरम पुरुषों (जिनसे विवाह संभव हो) के सामने अपने शरीर और बालों को ढक कर रखना चाहिए।
- हिजाब साफ-सुथरा, सादा और शालीन होना चाहिए। भड़कीले रंगों और चमकदार डिज़ाइन से बचने की सलाह दी जाती है, जो अनावश्यक ध्यान आकर्षित करते हैं।
- हिजाब पहनना केवल बाहरी आवरण नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जिम्मेदारी है, जो अल्लाह के आदेशों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
- यह एक मुस्लिम महिला की सार्वजनिक पहचान, आस्था और आज्ञाकारिता का प्रतीक है।
हिजाब पहनने की कोई निश्चित उम्र तय नहीं है। यह पारिवारिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत समझ पर निर्भर करता है। आमतौर पर कई मुस्लिम लड़कियां यौवनावस्था के आसपास, लगभग 12–13 वर्ष की उम्र में हिजाब पहनना शुरू करती हैं।
इस्लाम में पुरुषों की जिम्मेदारी
इस्लाम केवल महिलाओं पर ही नहीं, बल्कि पुरुषों पर भी शालीनता की जिम्मेदारी डालता है। पुरुषों को गैर-महरम महिलाओं को गलत नज़र से देखने से मना किया गया है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, चेहरे और हाथों के अलावा किसी गैर-महरम महिला के शरीर या बालों को देखना गुनाह माना जाता है।
मुस्लिम महिला कब हिजाब उतार सकती है?
मुस्लिम महिला निम्न परिस्थितियों में हिजाब उतार सकती है:
- निजी स्थानों पर, जैसे अपने कमरे या बाथरूम में
- अपने शौहर (पति) के सामने
- महरम रिश्तेदारों के सामने, जैसे पिता, भाई, बेटा, दादा, चाचा आदि
- अपनी मां, बहन, बेटी, भतीजी और अन्य महिला रिश्तेदारों के साथ
- आपातकालीन या चिकित्सकीय कारणों से
हिजाब का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
हिजाब मुस्लिम महिलाओं के लिए केवल शरीर ढकने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह आत्म-सम्मान, गरिमा और आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतीक है। यह महिलाओं को उनके व्यक्तित्व, चरित्र और बुद्धि के आधार पर पहचाने जाने का अवसर देता है, न कि केवल उनकी बाहरी सुंदरता के आधार पर।
किसी महिला के हिजाब को जबरन हटाना न केवल उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि उसकी धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाता है। हिजाब इस्लाम का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आदेश है, जिसे समझने और सम्मान देने की आवश्यकता है। एक लोकतांत्रिक और बहु-सांस्कृतिक समाज में सभी धर्मों और उनकी मान्यताओं के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान बनाए रखना सामाजिक सौहार्द के लिए बेहद जरूरी है।

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