अविवाहित लड़कियाँ अलता लगाते समय एड़ियाँ क्यों नहीं जोड़तीं? जानिए

भारतीय संस्कृति में 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है। इनमें से एक प्रमुख श्रृंगार है महावर, जिसे आम भाषा में अलता या अलाटा भी कहा जाता है। यह पैरों पर लगाया जाने वाला लाल रंग केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ माना जाता है। किसी भी दुल्हन का श्रृंगार अलता के बिना अधूरा समझा जाता है।

धार्मिक अनुष्ठान, विवाह या शुभ त्योहार—हर अवसर पर महिलाओं का पैरों में अलता लगाना शुभ माना जाता है। लेकिन जब बात अविवाहित लड़कियों की आती है, तो एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है—अलता लगाते समय उनकी एड़ियों को आपस में नहीं जोड़ा जाता। यानी एड़ी का पिछला हिस्सा खुला छोड़ दिया जाता है। इसके पीछे गहरे धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक अर्थ छिपे हैं।

अलता और एड़ियों को न जोड़ने की धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अलता के साथ एड़ियों का जुड़ना “पूर्णता” का प्रतीक माना जाता है। विवाह के बाद स्त्री का जीवन एक नए चरण में प्रवेश करता है, जिसे पूर्ण जीवन की शुरुआत माना जाता है।

अविवाहित लड़की को परंपरागत रूप से अपने पिता के घर का हिस्सा माना जाता है। उसका जीवन अभी परिवर्तन की प्रक्रिया में होता है—वह मायके की परंपराओं, संस्कारों और पहचान से जुड़ी होती है। ऐसे में एड़ियों को न जोड़ना इस बात का संकेत माना जाता है कि:

  • उसका जीवन अभी अपूर्ण अवस्था में है
  • विवाह के बाद वह एक नए घर और नए रिश्तों से जुड़ेगी
  • उसका वैवाहिक जीवन अभी प्रारंभ नहीं हुआ है

विवाह के दिन एड़ियों का जुड़ना: नए जीवन का प्रतीक

शादी के दिन जब पहली बार दुल्हन की एड़ियाँ अलता से आपस में जुड़ती हैं, तो यह एक गहरे प्रतीकात्मक अर्थ को दर्शाता है। इसका मतलब होता है कि:

  • अब वह एक नए रिश्ते में बंध चुकी है
  • उसका वैवाहिक जीवन आरंभ हो रहा है
  • वह अपने मायके से ससुराल के जीवन की ओर कदम बढ़ा रही है

विवाहित महिलाओं के लिए एड़ियों को जोड़कर महावर लगाना संपूर्ण वैवाहिक सुख, पति-पत्नी के अटूट बंधन और जीवन की स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि अविवाहित लड़कियों के लिए एड़ियों को जोड़कर अलता लगाना परंपरागत रूप से वर्जित माना गया है।

अलता लगाने के व्यावहारिक और औषधीय लाभ

  • अलता केवल सांस्कृतिक या धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके स्वास्थ्य संबंधी फायदे भी माने जाते हैं।
  • पैरों में अलता लगाने से शीतलता मिलती है, जिससे मानसिक तनाव कम होता है
  • पारंपरिक अलता में प्राकृतिक तत्व और औषधीय गुण होते थे
  • यह फटी एड़ियों, पैरों की रूखापन और त्वचा संबंधी समस्याओं में सहायक मानी जाती थी
  • इस प्रकार अलता सौंदर्य, स्वास्थ्य और आध्यात्म—तीनों का सुंदर संगम है।

भारतीय परंपराओं की गहराई

भारतीय परंपराओं में शायद ही कोई नियम ऐसा हो जो बिना कारण के बना हो। अलता लगाते समय एड़ियों को न जोड़ना केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि स्त्री के जीवन के यौवन, उसकी अवस्था और उसके भावी जीवन का सम्मान करता है। यही वजह है कि आज भी कई परिवारों में बुजुर्ग इस नियम का सख्ती से पालन कराते हैं।

अलता का इतिहास और पौराणिक उल्लेख

अलता को महावर, अलता या अलाटा भी कहा जाता है। इसकी परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके प्रमाण हमें:

  • उपनिषदों
  • कालिदास के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’
  • जैसे प्राचीन साहित्य में देखने को मिलते हैं।

हिंदू धर्म में अलता को देवी लक्ष्मी और माँ दुर्गा से जोड़ा जाता है। इसके अलावा भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को भी हथेलियों और पैरों पर अलता लगाए हुए दर्शाया गया है, जो इसकी पवित्रता और दिव्यता को दर्शाता है।

अविवाहित लड़कियों द्वारा अलता लगाते समय एड़ियों को न जोड़ना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न चरणों को सम्मान देने वाली एक गहरी सांस्कृतिक सोच है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि भारतीय संस्कृति में सौंदर्य के साथ-साथ भाव, प्रतीक और अर्थ को भी उतना ही महत्व दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी ये परंपराएँ हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं और हमारे संस्कारों की सुंदरता को जीवित रखती हैं।

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