गर्भवती महिलाओं और शिवलिंग पूजन: शास्त्रों में क्या कहते हैं?
शिवभक्ति में गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग से जुड़े कुछ नियमों का पालन करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गर्भावस्था में महिला को शिवलिंग को सीधे स्पर्श नहीं करना चाहिए। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण और धार्मिक, शारीरिक व मानसिक दृष्टिकोण।
शिवलिंग और उसकी ऊर्जा
शिवलिंग भगवान शिव के निराकार और अनंत स्वरूप का प्रतीक है। इसे ब्रह्मांड की सृजन और विनाश की शक्ति का केंद्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग अत्यधिक शक्तिशाली ऊर्जा का स्त्रोत है। यह केवल पूजा का माध्यम नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का एक केंद्र भी है।
गर्भवती महिलाओं और संवेदनशीलता
गर्भावस्था में महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों ही भावनात्मक और शारीरिक रूप से अत्यंत संवेदनशील होते हैं। माना जाता है कि इस अवस्था में अत्यधिक आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रत्यक्ष संपर्क संतुलन बिगाड़ सकता है। इसलिए कई परंपराओं में गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग स्पर्श से बचने की सलाह दी जाती है।
धार्मिक दृष्टिकोण
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, शिवलिंग ब्रह्मचर्य, तप और सृजन-संहार की शक्ति का प्रतीक है, जबकि गर्भावस्था सृजन की अवस्था है। इन दोनों ऊर्जा स्वरूपों को अलग रखना शास्त्रों में उचित माना गया है। इसे आध्यात्मिक दृष्टि से संतुलन बनाए रखने का तरीका भी समझा जाता है।
सुरक्षा और स्वास्थ्य कारण
शास्त्रों में शिवलिंग को न छूने के नियम के पीछे भौतिक सुरक्षा कारण भी हो सकते हैं। पुराने समय में मंदिरों में भीड़, फिसलन और लंबे समय तक खड़े रहने की परिस्थितियों में गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा के लिए ऐसे नियम बनाए गए। यह न केवल शारीरिक सुरक्षा के लिए था, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी।
गर्भावस्था में शिवलिंग को न छूने की परंपरा केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि महिला और शिशु दोनों की सुरक्षा और संतुलन बनाए रखने की एक समझदारी भरी प्रथा भी है। यदि गर्भवती महिला चाहती है, तो वह मंदिर में दूर से दर्शन कर सकती है और मंत्र जाप या पूजा में भाग ले सकती है, ताकि शिवभक्ति का लाभ प्राप्त हो लेकिन सुरक्षा और शांति भी बनी रहे।

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