जिले में संचालित हो रही किराये के लाईसेंस से मेडिकल स्टोर,अनपढ़ों के द्वारा बेचीं जा रही दवाईयां

रेवा : छिंदवाड़ा में 22 बच्चों की मौत के बाद से स्वास्थ्य विभाग ने कागजी खाना पूर्ति करने करवट बदल लिया है। सौदों पर चलने वाले विभाग ने अपनी नौकरी को बचाने के लिए हाथ पैर चलाने शुरू कर दिये। एक ओर जहां ड्रग्स अधिकारी मेडिकल दुकानों में जा कर दस्तक दे रहे तो वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य अमला प्रशासन के साथ मिलकर संजीवनी नर्सिंग होम को सीज कर अपने दायित्व का निर्वाहन कर दिया। अगर इस कार्रवाही के पर्दे को हटा कर देखे तो आज भी वही स्वास्थ्य विभाग का वही हाल है जो पहले था। जिले में शहर से लेकर ग्रामीण अंचल में क्लीनिक एंव नर्सिंग होम के रूप में मौत की दुकाने खुली हुई है। जिनका समान ऐसे मेडिकल स्टोरों से बेचा जा रहा है जो किराये के लाईसेंस लेकर दुकाने चला रहे हैं। ऐसी दुकानों से दवा बेचने वाले फर्मासिस्ट नहीं अनपढ़ लोग है जिनको अंग्रेजी के एबीसीडी तक का ज्ञान नहीं है। रीवा मऊगंज जिला मिलाकर लगभग 15 सौ से ज्यादा मेडिकल स्टोर संचालित है, जिसमें से लगभग 90 प्रतिशत दुकानें ऐसी है जो किराये के लाईसेंस से चलती हैं। लाईसेंसधारी घर बैठकर एक मोटी रकम मेडिकल स्टोर के संचालकों से ले रहा,जिसकी पूर्ति करने के लिए मेडिकल स्टोर के संचालक डॉक्टरों से सांठ-गांठ बना रखे है। मजे की बात तो यह है कि हर डॉक्टर की अपनी अलग-अलग दुकानें है जहां से वे एक मोटी कमीशन समेटते है। ये सब गोरखधंधा ऐसे जिले में पनप रहा है जिस जिले के विधायक को प्रदेश के डिप्टी सीएम व स्वास्थ्य मंत्री के पद से नवाजा गया है,जिसकी बागडोर रीवा शहर में एक निज सचिव ने अपने हाथों में ले रखी है। शहर में संजीवनी अस्पताल ही नहीं उसके जैसे ऐसे कई नर्सिंग होम है जो बगैर पंजीयन के संचालित है। ऐसा नहीं हैकि इस बात की जानकारी सीएमएचओ को नहीं है,जानकारी होते हुए भी उनकी खामोशी के पीछे बड़ा राज छुपा हुआ है जो शोध का विषय है। मीडिया में चली खबरों के मुताबिक संजीवनी अस्पताल के संचालक और सीएमएचओ के बीच सौदे को लेकर तकरार हुई जिसकी वजह से संजीवनी अस्पताल का पर्दा उजागर हो गया। सूत्र बताते है कि गले में पड़े फंदे को निकालने के लिए सीएमएचओ और संजीवनी अस्पताल के संचालक आकांक्षा तिवारी के पति श्यामशाह मेडिकल कॉलेज के सह प्राध्यापक मुकेश तिवारी समझौते का रास्ता अख्तियार कर रहे है। खैर हम मेडिकल स्टोरों की बात करें तो अस्पताल चौराहा,धोबिया टंकी,सिरमौर चौराहा,समान चौराहा,तानसेन काम्लेक्स में सजी मेडिकल स्टोर की अधिकांश दुकाने किराये के लाईसेंस चल रही है। यही हाल नर्सिंग-होम में खुली मेडिकल दुकानों के हैं। सोच का विषय है कि स्वास्थय विभाग में गिनती के दो ड्रग इंस्पेक्टर है हाल ही में एक ट्रेनी महिला ड्रग इंस्पेक्टर विभाग को मिली है। दो ड्रग इंस्पेक्टरों के भरोसे रीवा मऊगंज जिले की 15 सौ से ज्यादा मेडिकल स्टोर है, सोधी की तो बात ही अलग है। इनका काम हर माह मेडिकल स्टोर का निरीक्षण करना, दस्तावेजो एंव दवाईयों को खंगालना, सेल्समैनों की योग्यता की जानकारी हासिल करना है। लेकिन सूत्र बताते है कि ये सब कार्य केवल कागजों तक ही सीमित है।
मेडिकल हब बना रीवा का डाक्टर कालोनी
एसजीएमएच के बगल में सरकारी बंगले दिये गये है ताकि वे अपने परिवार के साथ रहे और समयानुसार एसजीएमएच पहुंच कर मरीजों का उपचार कर सके। आश्चर्य की बात तो यह है कि डॉक्टर्स कालोनी में ऐसा कोई भी शासकीय आवास नहीं है जिसमें डॉक्टर अपनी-अपनी क्लीनिक खोल कर न बैठे हो। इतना ही नहीं अपने ही बंगले में पैथालाजी तक संचालित कर रखे है। डॉक्टर कालोनी में कदम रखे तो ऐसा बड़े-बड़े बोर्ड लगता है कि जैसे डॉक्टरों के निवास स्थान पर नहीं बल्कि मेडिकल हब पर पहुंच गये हो। सभी डॉक्टर अपने-अपने घरों के बाहर बोर्ड लगा रखे है जिसमें अपने योग्यता का बखान कर रखे है। इतना नहीं डॉक्टर बकायदा अपनी क्लीनिक पर दलाल भी पाल रखे है जो मरीजो को ये बताते है कि इस दुकान से दवा लेना और इस पैथालाजी से जांच करवाना और इसके यहां एक्स रे करवाना है। यदि मरीज ने दलालों के हिसाब से दवा नहीं ली या जांच नहीं करवाई तो दूसरे यहां की जांच रिपॉर्ट को डॉक्टर फेक देते है। सोच का विषय यह है कि जिस डॉक्टर को लोग धरती का भगवान कहते है वहीं डॉक्टर अब मरीजों के साथ लूट पर आमादा है और वो भी एक संगठित गिरोह के साथ।आश्चर्य है कि यह सब वहां हो रहा है जहां के विधायक को प्रदेश का डिप्टी सीएम व स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है।
रिपोर्टर : अर्जुन तिवारी
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