लंदन में एस जयशंकर ने PoK के मुद्दे पर किया बड़ा खुलासा...

Adarsh kanoujia
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरूवार को लंदन के प्रतिष्ठित चैथम हाउस में जम्मू-कश्मीर के हालात और भारत सरकार की नीतियों पर खुलकर बात की। उनकी बातों से साफ झलकता है कि भारत न केवल कश्मीर में शांति और विकास की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ा रहा है, बल्कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को लेकर भी अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने की ओर अग्रसर है। जयशंकर ने कश्मीर की समस्याओं को हल करने में भारत की अब तक की उपलब्धियों को गिनाते हुए इसे एक सुनियोजित प्रक्रिया का हिस्सा बताया।
जयशंकर ने भारत द्वारा लिए गए 3 फैसलों को अहम बताया-
उन्होंने कहा कि पहला फैसला था अनुच्छेद 370 को हटाना, जिसने जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ पूरी तरह जोड़ने का रास्ता खोला। दूसरा फैसला था क्षेत्र में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना, जिससे लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आए। तीसरे चरण के रूप में, केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव कराए गए, जिसमें भारी मतदान ने लोकतंत्र के प्रति लोगों के भरोसे को उजागर किया। लेकिन जयशंकर ने जोर देकर कहा कि कश्मीर का मसला तब तक पूरी तरह हल नहीं होगा, जब तक पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए कश्मीर का हिस्सा भारत को वापस नहीं मिल जाता। “जब वह हिस्सा वापस आएगा, मैं आपको भरोसा देता हूं, कश्मीर का मसला हल हो जाएगा,” उन्होंने आत्मविश्वास के साथ कहा।
लंदन में दिए गए अपने भाषण में जयशंकर ने न केवल कश्मीर में भारत की प्रगति का खाका खींचा, बल्कि PoK को लेकर भारत के दृढ़ संकल्प को भी दुनिया के सामने रखा। उनके शब्दों से साफ है कि सरकार इस मुद्दे को अब पीछे नहीं छोड़ना चाहती। उन्होंने यह संदेश दिया कि कश्मीर में विकास, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की बहाली के बाद अब अगला लक्ष्य PoK को वापस लाना है। यह खुलासा न सिर्फ भारत की रणनीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए तैयार है। जयशंकर के बयान से यह स्पष्ट होता है कि भारत अब PoK को लेकर न केवल सोच रहा है, बल्कि उसकी वापसी के लिए मानसिक और कूटनीतिक तैयारी भी कर रहा है।
PoK को लेकर पहले भी दे चुके है बयान-
जयशंकर का यह बयान उनकी पहले की टिप्पणियों से भी मेल खाता है। 9 मई, 2024 को दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में छात्रों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था कि PoK भारत का अभिन्न अंग है और देश की हर राजनीतिक पार्टी इस संसदीय संकल्प से बंधी है कि वह इसे वापस लाए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद PoK का मुद्दा लोगों के सोच में फिर से प्रमुखता से आया है। वहीं, 5 मई, 2024 को ओडिशा के कटक में एक कार्यक्रम में उन्होंने इतिहास का जिक्र करते हुए अफसोस जताया कि स्वतंत्रता के शुरुआती दिनों में भारत ने पाकिस्तान से PoK खाली करने की मांग नहीं की, जिसके कारण यह दुखद स्थिति बनी रही। “जब घर का रखवाला जिम्मेदार न हो, तो बाहर से कोई चोरी कर लेता है,” उन्होंने तंज कसते हुए कहा।
कश्मीर को लेकर भारत की यह नई सोच और PoK पर केंद्रित दृष्टिकोण आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बन सकता है। जयशंकर का यह बयान न सिर्फ कश्मीर के भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, बल्कि भारत की उस अटूट प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है, जो अपने क्षेत्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है।
कुछ वक्त पहले राजनाथ सिंह का बयान भी सामने आया था-
देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पीओके में आतंकवाद के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान को नसीहत और चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि पीओके की जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद का खतरनाक कारोबार चलाने में किया जा रहा है। ये बात मैं खुलकर कहना चाहता हूं कि वहां आज आतंकवादियों के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाए जा रहे हैं। सीमा से सटे हुए इलाकों में लॉन्च पैड बने हुए हैं। इसकी पक्की जानकारी है। भारत सरकार को सब पता चल रहा है। पाकिस्तान को इस बीमारी को खत्म करना ही होगा, नहीं तो डॉट डॉट डॉट।
कैसे बना पीओके-
15 अगस्त 1947 को आजादी के साथ-साथ बंटवारा भी मिला। भारत और पाकिस्तान अलग-अलग मुल्क बने, उस समय भारत 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा था। लेकिन कुछ रियासतें थीं, जो भारत और पाकिस्तान में से किसी के साथ नहीं जाना चाहती थीं. जम्मू-कश्मीर रियासत भी ऐसी ही थी। यहां की ज्यादातर आबादी मुस्लिम थी. लेकिन महाराजा हरि सिंह हिंदू थे. तब महाराजा हरि सिंह ने भी जम्मू-कश्मीर को आजाद आजाद ही रखने का फैसला लिया।लेकिन बंटवारे के साथ ही पाकिस्तान की नजर कश्मीर पर थी. वो कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था. लेकिन कश्मीर ने अलग रहना ही चुना।आजादी के कुछ महीने बाद ही 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान से हजारों कबायलियों से भरे सैकड़ों ट्रक कश्मीर में घुस गए. इनका मकसद था कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. ये वो कबायली थे जिन्हें पाकिस्तान की सरकार और सेना का समर्थन मिला था।
दिन गुजरते गए और पाकिस्तानी कबायली कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा करते चले गए. आखिरकार जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी।
27 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के दस्तावेज पर दस्तखत किए। अगले ही दिन भारतीय सेना कश्मीर में उतर गई. धीरे-धीरे भारतीय सेना पाकिस्तानी कबायलियों को पीछे धकेलने लगी।
ये वो समय था जब हालात बहुत अलग थे. भारत और पाकिस्तान, दोनों ही सेनाओं के प्रमुख अंग्रेज थे। तब माउंटबेटन की तरफ से भी भारत पर दबाव था.कहा जाता है कि भारत में तब के गवर्नर जनरल माउंटबेटन की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू इस मसले को एक जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र में ले गए।
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