प्रशांत किशोर,अरविंद केजरीवाल का बिहारी संस्करण है : मीडिया इंटेलिजेंस

सहरसा : बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर देश की सबसे प्रतिष्ठित चुनाव रणनीति प्रबंधन एवं सर्वे कंपनी मीडिया इंटेलिजेंस रिपोर्ट बिहार में जमीनी स्तर पर काम कर रही है।इंटेलिजेंस के सीईओ बसंत झा ने जमीनी विश्लेषण करते हुए कहा कि प्रशांत किशोर की पदयात्रा और आम जनमानस के बीच जनसुराज पार्टी की पब्लिक फीडबैक पर मीडिया इंटेलिजेंस रिपोर्ट कंपनी कुल मोटा मोती लब्बो लुआब बताना चाहती है की प्रशांत किशोर, अरविंद केजरीवाल का बिहारी संस्करण है। केजरीवाल की पॉलिटिकल ग्राफ काफी सफल ही नहीं कई मायने में ऐतिहासिक रहा,ना भूतो ना भविष्यति। लेकिन बिहार की राजनीति में पीके को केजरीवाल का अंश मात्र भी सफलता मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। सक्रिय राजनेता के रूप में पीके असफल रहेंगे। पीके की पदयात्रा भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर रहा , आम जन से पीके दूर ही रहा क्योंकि पीके यात्रा के बाद और पहले अपने वैनिटी वैन से बाहर ही नहीं निकलते थे। भाषण और पदयात्रा के बाद कोई सीधा संवाद आम जन से वैसा नही रहा जैसा राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा में था। उपचुनाव में अपने उम्मीदवार को उतारना पीके का आत्मघाती कदम रहा, जिसका पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल हिला। आखिर पीके किसका खेल बिगाड़ सकते है राजनीति में। बिहार की राजनीति में जाति परमानेंट है जबकि धर्म टेंपररी। जातिगत, उपजातिगत वोट की राजनीति बिहार की असलियत है। पीके के साथ कोई भी एक जाति पूरी तरह समर्थन में नहीं है यही पीके के समस्या भी है। चुनावी रणनीतिकार के रूप में पीके को शहरी क्षेत्रों की जनता जो टीवी न्यूज देखते है। डिजिटल प्लेटफार्म पर सक्रिय रहते है सिर्फ वही जानते है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में पीके की स्वीकारोक्ति नदारद है। शहरी वोट मुख्यतः बीजेपी का ही रहा है तो कमोवेश पीके शहरी क्षेत्रों में आंशिक वोट काटकर बीजेपी को ही नुकसान पहुंचाएगी। ग्रामीण वोट में मुख्यतः पचपनिया वोट नीतीश कुमार का है जो पीके को कभी नहीं मिलेगा। मुस्लिम वोट आरजेडी, जेडीयू, और कांग्रेस को जाती रही है। लेकिन मुस्लिम अंतिम समय तक अवलोकन करते है कि बीजेपी को कौन हरा रहा है उसी को वोट देते है। ऐसे में पीके मुस्लिम वोट ले पाएंगे मुश्किल दिखता है। सवर्ण वोट, बिहार में जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था अब बीजेपी के पाले में है। नीतीश का हार्ड कोर वोट पर पीके का कोई जादू नहीं चलेगा।जनसुराज से जो भी उम्मीदवार जीत कर आयेंगे वो उस उम्मीदवार की अपनी व्यक्तिगत जीत होगी ना की पीके और जनसूरज की। दूसरे पार्टी के बागी और नाराज पूर्व एमएलए, पूर्व मेयर, पूर्व पार्षद, पूर्व चेयरमैन को ही ज्यादातर पीके टिकट देंगे। पीके को जमीनी राजनीति का कोई अनुभव नहीं है, यहां तक कि छात्र संघ चुनाव राजनीति का भी अनुभव नहीं है, सिर्फ डेटा पॉलिटिक्स किया है अभी तक, जिसमे बहुत सफलता भी मिली , बहुत जगह असफल भी रहे। इसी डेटा पॉलिटिक्स की भ्रम की वजह से पीके की पटना गांधी मैदान की रैली फ्लॉप रही। बिहार में सरकार बनाने की बात कर रहे है पीके और तमिलनाडु में अभिनेता विजय थलापति को चुनाव लड़वाने का टेंडर ले रहे है। काफी विरोधाभास है पीके के कार्यप्रणाली में। पीके बिहार चुनाव में आंशिक रूप से फिटकिरी का काम करेंगे।

रिपोर्टर : अजय कुमार

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