लक्ष्मीनिया धाम के संस्थापक भोगेन्द्र शर्मा मिथिला के दशरथ मांझी के रूप में हुए चर्चित

सहरसा : सहरसा जिले के सत्तर कटैया प्रखंड के लक्षमीनिया धाम के संस्थापक दैनिक मजदूर भोगेंद्र शर्मा विद्यापति सांस्कृतिक परिसर लक्षमीनियां धाम को अकेले दम पर स्थापना करने वाले  त्याग तपस्या एवं समर्पण को देख लोग उन्हें श्रद्धान्वित होकर मिथिला के दशरथ मांझी के रूप में जानने लगे हैं। भोगेन्द्र शर्मा ने बताया कि उन्हें बचपन से ही पेंटिंग के क्षेत्र में जन्मजात गुण मिले हैं। जिस कारण हुए दूसरी कक्षा में पढ़ते हुए अपने घर के पालतु मवेशी गाय को चराने जाते थे। इस क्रम में  सड़कों पर विभिन्न प्रकार की आकृति को बनाया करते थे। उन्होंने बचपन से ही बहुत सारी पेंटिंग बनाई। जहां सहरसा कॉलेज में प्रदर्शनी में शामिल किया गया। लेकिन वह बताते हैं कि दुर्भाग्य बस मेरी सभी पेंटिंग चोरी हो गई। लेकिन उन्होंने फिर भी हार नहीं माना। बल्कि कला के क्षेत्र में दरभंगा से उन्होंने चित्रकला का प्रशिक्षण प्राप्त किया और वह तब से पेंटिंग मजदूर के रूप में कार्य कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हुए मैथिली अभियान को जारी रखा। उनके भगीरथ प्रयास से ही विद्यापति सांस्कृतिक परिसर लक्ष्मीनिया धाम की स्थापना की। इस धाम में राजा जनक, याज्ञवल्क्य,महाकवि विद्यापति, उगना महादेव, लोरिक,सल्हेस,  दिनाभद्री, कारू खिरहर, मांगन खब्बास सहित अन्य महापुरुषों की प्रतिमा स्थापित की गई है।साथ ही साथ 15 फीट ऊंची मां जानकी की प्रतिमा भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। भोगेन्द्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबी में बिताया है लेकिन उनके अंदर छिपी हुई प्रतिभा उन्हें चैन से नहीं रहने दिया।विशेष कर उन्होंने मैथिली अभियानी के रूप में मिथिला में घूम-घूम कर स्लोगन लिखकर मैथिली भाषा को प्रचारित एवं प्रसारित करने का काम किया। उन्हें एक पुत्र एवं दो पुत्री है।उन्होंने बताया कि मेरी एक लड़की मैट्रिक एवं दूसरी इंटर पास है।जिसकी शादी हो चुकी है। वही एकलौता पुत्र शिक्षक कए रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि लक्ष्मीनिया धाम की स्थापना के लिए 2001 से भिक्षाटन शुरू किया। वहीं 2006 से मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई। 2014 में इसका उद्घाटन किया गया।  2017 में जानकी जी की विशाल प्रतिमा अपने हाथों से निर्माण किया। उन्होंने बताया कि सांस्कृतिक परिसर में प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी 19 नवंबर को स्थापना दिवस मनाया जाता है। वही इस धाम के द्वारा लोरिक सम्मान, मांगन खब्बास सम्मान, लोक कला सम्मान के साथ-साथ कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया जाता है। इस धाम पर निरंतर विकास कार्य किया जा रहे हैं। जिसके अंतर्गत पूर्व विधायक स्वर्गीय अब्दुल गफूर के द्वारा सामुदायिक लोरिक सांस्कृतिक भवन का निर्माण करवाया गया वहीं प्रखंड प्रमुख के द्वारा सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया गया है जिसके कारण इस धाम पर आने वाले श्रद्धालुओं को काफी सहूलियत मिल रही है।भोगेन्द्र शर्मा की त्याग तपस्या एवं समर्पण को देखते हुए उन्हें अब तक कई पुरस्कार एव सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें मिथिला लोकमंच लहरिया सराय, मिथिला सेवा सम्मान, लोक कला मधुबनी, चेतना समिति पटना सुलभ सेवा सम्मान, मिथिला विभूति सम्मान गुजरात, मिथिला रत्न अयोध्या, अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन नेपाल, चेतना समिति बनगांव एवं सुपौल  द्वारा मिथिला शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया है। भोगेंद्र शर्मा ने बताया कि दैनिक मजदूर के रूप में उन्होंने बहुत कष्ट एवं तपस्या के द्वारा इस धाम का निर्माण किया गया है।जिससे आत्मिक सुख एवं अलौकिक आनंद की अनुभूति हो रही है।

रिपोर्टर : अजय कुमार

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