द्वापर युग से मनाया जाने वाला सामा चकेवा पर्व का हुआ समापन
सहरसा : मिथिला की लोक परंपरा एवं भाई बहन की अटूट श्रेणी का प्रतीक पर्व सामा चकेवा का विसर्जन धूमधाम से किया गया सामा चकेवा मिथिला क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है जो भाई-बहन के अटूट समय और प्रेम का प्रतीक माना जाता है धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग से ही यह पर्व भाई बहन के प्रेम के पर्व के रूप में मनाया जाता है कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की पुत्री श्याम एवं उनके पुत्र चक्रवात दोनों भाई-बहन में अपूर्व प्रेम था लेकिन दुष्ट दरबारी के द्वारा भगवान श्री कृष्णा से सामा के संबंध में अनर्गल बातें बता दी जिसके कारण श्री कृष्ण ने सॉन्ग को पक्षी होने का श्राप दे दिया इस बात का पता जब चक्रवात को लगा तो उसने भी अपने बहन को खोजने खोजने के लिए पक्षी रूप धारण कर किया और इस प्रकार चक्रवात ने श्याम को श्याम को झूठे सब से मुक्ति दिलाई उसे समय से भाई-बहन के जीवंत प्रेम को यादगार बनाने के लिए सामा चकेवा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है इस मौके पर रहमान चौक वार्ड नंबर 32 निवासी ममता देवी, बिछी देवी, पवन देवी, बबिता देवी, बीना देवी,निशा कुमारी,प्रज्ञा रंजन,रिंकी कुमारी ने बताया कि लगभग 15 दिनों तक मनाया जाने वाला सामा चकेवा की पर्व में बहन अपने भाइयों को समृद्ध होने की कामना करती है।वही बहनों ने सामा और चकेवा की मिट्टी की मूर्तियों को खूबसूरती से सजाया और उन्हें डाला में रखकर तालाब और कोसी नदी के जलाश्रयों में विसर्जित किया गया।इस दौरान मूर्तियों को भोजन कराना, उसे सजाना संवारना उसकी साफ सफाई का पूरा ख्याल रखा जाता है। वही छठ पारण के बाद हर शाम गांव मोहल्ले में मैथिली सामा चकेवा लोकगीत का गायन किया जाता है।साथ ही नन्द अपने भाभियों के साथ हंसी ठिठोली भी गीत के माध्यम से करती है।साथ ही पारंपरिक गीत सोहर एवं समदाउन गाकर अपने भाइयों की समृद्धि की कामना करती है। वहीं दुष्ट लोगों के विनाश की कामना की जाती है।घर के आंगन में मिट्टी से बने सामा चकेवा सतभैया वृंदावन बंटी तीतर ढोलिया बजानिया और चुगला की मूर्ति बनाई जाती है।महिलाएं अपने भाइयों के नाम से डाला सजाकर घर से निकलती है। इस अवसर पर पारंपरिक विधि से सामा को भाई ठेहुने से फोड़ कर आंचल में लिया जाता है और अपने भाइयों को दीर्घायु जीवन की कामना की जाती है।
रिपोर्टर : अजय कुमार


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