बाल देखरेख संस्थान मे 14 से 19 नवंबर तक बाल अधिकार सप्ताह का आयोजन

सहरसा : बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पहल पर बिहार के सभी बाल देखरेख संस्थान में 14 से 19 नवंबर तक बाल अधिकार सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में सुरक्षित स्थान सहरसा में बाल दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर किशोर न्याय परिषद सहरसा के प्रधान दंडाधिकारी मनोज कुमार ने बाल अधिकार विषय पर आवासित किशोरों को जागरूक किया। उन्होंने कहा कि बाल श्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या है। जो देश की आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना में गहराई से जड़ें जमाए हुए है। गरीबी बाल श्रम का मुख्य कारण है। जब परिवार को भरण-पोषण में संघर्ष करना पड़ता है।तो माता-पिता बच्चों को काम पर भेजने को विवश हो जाते हैं। इसके अलावा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, सामाजिक मान्यताएं और परंपरागत सोच भी बाल श्रम को बढ़ावा देती हैं। भारतीय संविधान ने बाल श्रम के विरुद्ध कठोर प्रावधान किए हैं। संविधान का अनुच्छेद 23 किसी भी प्रकार के जबरदस्ती श्रम को प्रतिबंधित करता है।इस स्थिति मे अनुच्छेद 24 स्पष्ट करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कार्यों में नियुक्त नहीं किया जा सकता। साथ ही उन्होंने किशोर न्याय अधिनियम पर भी चर्चा की और कहा कि दंड बच्चों की कोमल भावनाओं और विचारों को कुचल देती है और उन्हें सदा के लिए अयोग्य और निष्क्रिय बना देता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चों को सजा या दंड नहीं देना चाहिए। दंड देना एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक तथ्य है।किशोर के जीवन में दंड उसके हित में ही दिया जाता है।दंड विधान सें जीवन मे अनुशासन व देशप्रेम की सीख मिलती है।वह अपने नागरिक कर्तव्य का बखूबी  निर्वहन कर समरस सामाज के सहभागी बनता है।इस मौके पर संस्थान से जुड़े सभी कर्मी एवं आवासित किशोर उपस्थित थे। मनोज कुमार ने बाल अधिकार विषय पर आवासित किशोरों को जागरूक किया। उन्होंने कहा कि बाल श्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या है। जो देश की आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना में गहराई से जड़ें जमाए हुए है। गरीबी बाल श्रम का मुख्य कारण है। जब परिवार को भरण-पोषण में संघर्ष करना पड़ता है।तो माता-पिता बच्चों को काम पर भेजने को विवश हो जाते हैं। इसके अलावा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, सामाजिक मान्यताएं और परंपरागत सोच भी बाल श्रम को बढ़ावा देती हैं। भारतीय संविधान ने बाल श्रम के विरुद्ध कठोर प्रावधान किए हैं। संविधान का अनुच्छेद 23 किसी भी प्रकार के जबरदस्ती श्रम को प्रतिबंधित करता है।इस स्थिति मे अनुच्छेद 24 स्पष्ट करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कार्यों में नियुक्त नहीं किया जा सकता। साथ ही उन्होंने किशोर न्याय अधिनियम पर भी चर्चा की और कहा कि दंड बच्चों की कोमल भावनाओं और विचारों को कुचल देती है और उन्हें सदा के लिए अयोग्य और निष्क्रिय बना देता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चों को सजा या दंड नहीं देना चाहिए। दंड देना एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक तथ्य है।किशोर के जीवन में दंड उसके हित में ही दिया जाता है।दंड विधान सें जीवन मे अनुशासन व देशप्रेम की सीख मिलती है।वह अपने नागरिक कर्तव्य का बखूबी  निर्वहन कर समरस सामाज के सहभागी बनता है।इस मौके पर संस्थान से जुड़े सभी कर्मी एवं आवासित किशोर उपस्थित थे।

रिपोर्टर : अजय कुमार

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.