हिंदी साहित्य की वीरता से भरी कविताएं

हिंदी साहित्य जो रसो का शैलियों का भाषा का और छंदो का मेला है जहां शब्दो से सराबोर रचनाओं का अवलोकन कविताओ कहानियों द्वारा किया जाता है , वहीं हिंदी साहित्य में हर एक भावना एक रस से जुड़ी हुई है , वहीं आज हम आपकों कराएंगे वीर रस की कुछ ऐसी कविताओं से रुबरू जिन्हे पढ़कर आप भी वीरता के इस सारांश में खो जाएंगे . 


हिंदी कविताओं में जब कभी वीर रस की कविताओं की बात होती है तब कुछ ऐसे कवि है जिनका नाम सबसे पहले आता है , जिनमें से एक है रीति काल के प्रमुख कवि भूषण जिनकी कुछ कविताएं किसी को भी वीरता के रस में सराबोर कर दें उनके काव्य की मूल संवेदना वीर-प्रशस्ति, जातीय गौरव तथा शौर्य वर्णन है. 

1- साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है

भूषण भनत नाद बिहद नगारन के

नदी-नद मद गैबरन के रलत है

ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल

गजन की ठैल –पैल सैल उसलत है

तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि

थारा पर पारा पारावार यों हलत है

2- चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार,

      दिल्ली दहसति चितै चाहि करषति है.

बिलखि बदन बिलखत बिजैपुर पति,

      फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है.

थर थर काँपत क़ुतुब साहि गोलकुंडा,

      हहरि हवस भूप भीर भरकति है.

राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,

      केते बादसाहन की छाती धरकति है.

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