"निर्मल वर्मा" हिन्दी के आधुनिक कथाकारों में एक मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार थे. शिमला में जन्मे निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार 1915 में साहित्य अकादमी पुरस्कार 1954 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. परिंदे से प्रसिद्धि पाने वाले निर्मल वर्मा की कहानियां अभिव्यक्ति और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ समझी जाती हैं....तो आइए आज हम "निर्मल वर्मा" की रचना को पढ़ते हैं....
जुदाई का हर निर्णय संपूर्ण और अंतिम होना चाहिए; पीछे छोड़े हुए सब स्मृति-चिह्नों को मिटा देना चाहिए, और पुलों को नष्ट कर देना चाहिए, किसी भी तरह की वापसी को असंभव बनाने के लिए।
कुछ लोग सुखी नहीं होते, लेकिन उनमें कुछ ऐसा होता है, जिसे देखकर हम अपने को बहुत छोटा-सा महसूस करते हैं। वे किसी दूसरे ग्रह के जीव जान पड़ते हैं…
पुराने दोस्तों के चेहरे खुद हमें अपने होने के खँडहरों की याद दिलाते हैं…चेहरे की झुर्रियाँ, सफ़ेद होते बाल, माथे पर खिंची त्योरियों के गली-कूचे…जिनके चौराहों पर हम उन्हें नहीं, खुद अपनी गुज़री हुई ज़िन्दगी के प्रेतों से मुलाक़ात कर लेते हैं।
हमें उन चीज़ों के बारे में लिखने से अपने को रोकना चाहिए, जो हमें बहुत उद्वेलित करती हैं।
मुझे लगता है कि अपने व्यक्तित्व या अहम् को अपने लेखन में प्रक्षेपित करने का प्रयास करने वाले बुरे लेखक होते हैं।
सुख के लम्हे तक पहुँचते-पहुँचते, हम उन सब लोगों से जुदा हो जाते हैं जिनके साथ हमने दुःख झेलकर, सुख का स्वप्न देखा था।
एक देश की पहचान सिर्फ उन लोगों से नहीं बनती, जो आज उनमें जीते हैं, बल्कि उनसे भी बनती है, जो एक समय जीवित थे और आज उसकी मिट्टी के नीचे दबे हैं।
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