धर्म जीवन नियम है,सुनी सुनाई बातों का होड़ नहीं।
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साहित्य : धर्म को लोग अंधविश्वास से क्यों जोड़ देते हैं, धर्म जीवन का नियम है ,जो व्यक्ति के जीवन को संयमित, अनुशासित और खुशहाल बनाती है। सनातन धर्म में जो भी विधि विधान,नियम है सबके सब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बनाए गए हैं, मनुष्य कल्याण के लिए बनाए गए हैं। जो व्यक्ति अच्छे आचरण का होता है वह धर्म के नियम का पालन कर अपने जीवन को अच्छा और खुशहाल बना लेता है और संपूर्ण जीवन जीता है। वह व्यक्ति सारे कर्तव्य का निर्वहन अच्छी तरह से करता है क्योंकि, धर्म में जो अनुशासन और नियम बताए गए हैं वह हमेशा कल्याण के मार्ग पर ले जाते हैं और व्यक्ति वही करता है जो सही होता है। जो व्यक्ति बुरे आचरण का होता है वह भी धर्म के डर से पाप पुण्य डर से संयमित हो जाता है और अपराध करने से खुद को बचाता है धर्म का डर उसे अनुशासित बनाता है। वर्तमान में जो धर्म का स्वरूप देखने के लिए मिल रहा है उसमें भक्ति कम और अंधभक्ति ज्यादा दिखाई दे रही हैं। लोग सुनी सुनाई बातों पर ज्यादा अमल करने लगे हैं, खासकर सोशल मीडिया पर ई गुरु के प्रवचनों की जैसे बाढ़ सी आ गई हैं। सारे तीज त्योहारों को जहां वे आम लोगो तक पहुंचा रहे हैं वहीं अंधविश्वास का एक मायाजाल भी बिछा रहे हैं जिसमें आम लोग आसानी से फंस रहे हैं? अब कुंभ स्नान को ही देख लीजिए इतनी ज्यादा भीड़ जमा हो रही है प्रशासन की सारी व्यवस्था कम पड़ रही है। लोग जान जोखिम में डालकर भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं? इन सब के पीछे सिर्फ एक ही बात सामने आ रही है कि, कुंभ स्नान से पाप धुलते हैं?मोक्ष प्राप्त होता है? जबकि कुंभ स्नान और गंगा स्नान का एक ही मकसद होता है कि, हम अपने आप को स्वच्छ और निर्मल रखें। स्वच्छ और निर्मल वातावरण में स्नान करके अपने आप को तारो ताजा बनाएं क्योंकि नदी स्नान से हमारे अंदर के सारे विकार बाहर निकलते हैं हमारा शारीरिक और मानसिक स्थिति दोनों करो ताजा होकर पॉजिटिव एनर्जी से भर जाता है और हमें अपने कर्तव्य करने के लिए एक्स्ट्रा ऊर्जा मिलती है, इसलिए नदी स्नान का विशेष महत्व है ।लेकिन यह थॉट की गंगा स्नान को स्नान से पाप धुलते हैं यह सरासर गलत है। सनातन धर्म ने कुछ कहा और लोगों ने इसे कुछ और ही बना दिया हैं।जहां हमें पॉजिटिव ऊर्जा ग्रहण कर अपने आप को तरोताजा करना है वहां हम उसे अंधविश्वास से जोड़कर पाप और मुक्ति का साधन बना देते हैं। मोक्ष तो हमें तब मिलेगा जब हम अपने सारे कर्तव्यों को, सारी जिम्मेदारियां को बखूबी निभाकर मुक्त हो जाएंगे। हमारे पूर्वजों ने जीवन के चार आश्रम धर्म अर्थ काम मोक्ष को बनाया है और सबके लिए 25 वर्ष की आयु का निर्धारण किया है शुरू के 25 वर्ष धर्म का ज्ञान जीवन का ज्ञान ,उसके बाद धन अर्जन के लिए है, उसके बाद कर्तव्य निर्वहन के लिए है और लास्ट के 25 वर्ष ईश्वर भक्ति में लीन होकर मोक्ष पर प्राप्ति के लिए है और यह मोक्ष प्राप्ति तभी होती है जब हम अपनी सारी जिम्मेदारियां से मुक्त हो जाते हैं। यदि हम जिम्मेदारी को पुरा किए बिना गंगा स्नान करते हैं तो फिर हमें मोक्ष कहां प्राप्त होगा।छोटे-छोटे बच्चे औरतें सभी भीड़ का हिस्सा बनते हैं यह कौन सी भक्ति है? एक कहावत है मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात हमारा मन जब स्वस्थ है तो हमें हर नदी तालाब में स्नान के बाद उसी ऊर्जा का अनुभव होगा जो संगम स्नान या कुंभ स्नान में होता है। चंद्र रोज पहले कुंभ में भगदर के कारण बहुत सारे लोगों ने अपनी जान गवा दी प्रशासन की सारी व्यवस्था कमजोर पड़ गई ? भगदड़ में मारे गए श्रद्धालुओं को लेकर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि वे मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। उनका तर्क था कि संगम में स्नान के दौरान मृत्यु होना सौभाग्य की बात है, क्योंकि यह आत्मा के परमगति प्राप्त करने का स्थान है। उन्होंने कहा, “यह महाप्रयाग है, जहां मृत्यु मोक्ष के समान होती है। जो गंगा के किनारे मरते हैं, वे वास्तव में मरते नहीं, बल्कि मोक्ष पाते हैं।” इन्होंने अपना बयान तो दे दिया मगर मरनेवाले वाले के पीछे जो परिवार है जो बाल बच्चे हैं, औरते उनकी देखरेख का क्या? धीरेंद्र शास्त्री ने यह जो वक्तव्य दिया यह वक्तव्य जीवन के आखिरी पड़ाव के लिए लागू होता है ना कि छोटे-छोटे औरतें , कमाकर खिलानें वाले पुरुष पर लागू होता है। समझ नहीं आता इस तरह के कम ज्ञान वाले लोग अपने आप को गुरु कैसे कहते हैं ?भक्ति के दो मार्ग होते हैं शगुन और निर्गुण। शगुन में सांसारिक लोग में पूजा पाठ करते हैं और निर्गुण उपासना साधु सन्यासी किया करते हैं और इन साधु संन्यासियों का मकसद समाज में ज्ञान फैलाना होता है ,मगर यह आजकल के कौन से साधु सन्यासी हो गए हैं जो समाज में भ्रम फैला रहे हैं, धर्म को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं? जो शास्त्र सम्मत कहीं से नहीं है। मनुष्य का पहला कर्तव्य अपने प्राणों की अपने शरीर की रक्षा होता है जो यह हमारे सनातन धर्म का हिस्सा है । हमारे जीवन को व्यवस्थित तरीके से जीने के लिए सनातन धर्म में सारी नीति नियम बना दिए गए हैं जिसे सिर्फ हमें जानना है और उनके अनुसार हमें अनुशासित जीवन जीना है।हमें और हमारा जीवन हमें अच्छा बनाना है ना की सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर अंधभक्त का हिस्सा बनकर परेशान होना है। कुंभ स्नान के लिए अवश्य जाएं मगर इस बात का ध्यान अवश्य रखें की आपके और आपके परिवार को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे भीड़ में जाएं मगर भेद का हिस्सा न बन सुरक्षित तरीके से स्नान कर वापस अपने घर लौट आए, भक्ती श्रध्दा से की जाती है , आप किसी भी मंदिर में जाकर भगवान के सामने हाथ जोड़कर सच्चे दिल से प्रार्थना करते हैं तो वह भी ईश्वर सुनते हैं तो फिर क्यों भागम भाग का हिस्सा बनना क्यों जान को जोखिम में डालकर खुद को परेशान करना । जो भी करें सोच समझकर करें यही हमारी जिंदगी की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
रिपोर्टर : चंद्रकांत पुजारी
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