"मैनूं विदा करो मेरे राम, मैनूं विदा करो"-शिव कुमार बटालवी

"मैनूं विदा करो मेरे राम, मैनूं विदा करो" एक प्रसिद्ध पंजाबी भजन है, जो भक्ति के भावों से ओत-प्रोत है। यह कविता एक भक्त के मन के गहरे दुख और भगवान से बिछड़ने की भावना को व्यक्त करती है। इस कविता में, भक्त भगवान से कहता है कि वह उसे विदा कर दें, क्योंकि वह अपने प्रियतम से मिलने के लिए तैयार है। यह भजन प्रेम और आस्था की गहरी भावना को प्रकट करता है। ये कविता प्रसिद्ध पंजाबी कवि और भक्ति संत शिव कुमार बटालवी द्वारा लिखी गई है। शिव कुमार बटालवी पंजाबी साहित्य के महान कवि थे, जो विशेष रूप से अपनी कविताओं और भजनों के लिए प्रसिद्ध हैं।

मैनूं विदा करो मेरे राम
मैनूं विदा करो
कोसा हंझ शगन पाउ सानूं
बिरहा तली धरो।
ते मैनूं विदा करो ।

वारो पीड़ मेरी दे सिर तों
नैण-सरां दा पाणी
इस पानी नूं जग्ग विच वंडो
हर इक आशक ताणीं
प्रभ जी जे कोयी बून्द बचे
उहदा आपे घुट्ट भरो
ते मैनूं विदा करो

कोसा हंझ शगन पाउ सानूं
बिरहा तली धरो ।
ते मैनूं विदा करो ।

प्रभ जी एस विदा दे वेले
सच्ची गल्ल अलाईए
दान कराईए जां कर मोती
तां कर बिरहा पाईए
प्रभ जी हुन तां बिरहों-वेहूणी
मिट्टी मुकत करो
ते मैनूं विदा करो

कोसा हंझ शगन पाउ सानूं
बिरहा तली धरो ।
ते मैनूं विदा करो ।

दुद्ध दी रुत्ते अंमड़ी मोई
बाबल बाल वरेसे
जोबन रुत्ते सज्जन मर्या
मोए गीत पलेठे
हुन तां प्रभ जी हाड़ा जे
साडी बांह ना घुट्ट फड़ो
मैनूं विदा करो ।

कोसा हंझ शगन पाउ सानूं
बिरहा तली धरो ।
ते मैनूं विदा करो । 

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