न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है-ख़ुमार बाराबंकवी

ख़ुमार बाराबंकवी एक मशहूर उर्दू शायर थे, जिनका असली नाम मुहम्मद हुसैन ख़ुमार था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हुआ था, और इसलिए उन्हें ख़ुमार बाराबंकवी के नाम से जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर रहे हैं और उनकी शायरी में खासतौर पर प्रेम, ग़म, और इंसानी भावना को बड़ी खूबसूरती से व्यक्त किया गया है। ख़ुमार बाराबंकवी की शायरी की विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने इश्क़ और ग़म को बड़े सलीके से शब्दों में ढाला। उनका शेर सुनने और पढ़ने में हमेशा दिल को छू जाता था।
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है
सुरूर का आलम था, दिल में एक खुमार था,
तेरे बिना हर जश्न भी, अब बेकार था।
हमें पता था, ये एक नशा था ग़मों का,
लेकिन फिर भी, उसी नशे में जीने का एतबार था।
सुरूर में बसी तुझसे मिलने की तलब,
ख़ुमार की तरह था तेरा चेहरा, जो हर पल था मुझमें घुलब।
इसी सुरूर में खो जाने की चाहत थी,
अब ख़ुमार का नाम "सुरूर", तुमसे ही तो जुड़ी हर बात थी।
ख़ुमार बाराबंकवी की शायरी में उनका दर्द, उनका इश्क़, और उनके अंदर का ग़म साफ तौर पर महसूस होता था, जो आज भी उर्दू शायरी के चाहने वालों के दिलों में जिंदा है।
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