गहरी सामाजिक चेतना को समझाती लीलाधर जगूड़ी की कविता, "नाटक जारी है"

लीलाधर जगूड़ी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट कवि हैं, जिनकी कविताएँ समाज, समय और सत्ता के बीच जूझते मनुष्य की चेतना को गहराई से छूती हैं। उन्होंने हिंदी कविता को एक नई दृष्टि, नया तेवर और नया बौद्धिक विवेक दिया। उनकी साहित्यिक यात्रा गहराई, प्रयोगशीलता और संवेदना से भरपूर रही है। उनकी एक प्रसिद्ध कविता "नाटक जारी है" प्रस्तुत है, जो उनकी गहरी सामाजिक चेतना और विडंबनात्मक शैली को दर्शाती है:
भीड़ में खड़ा हूँ
भीड़ के खिलाफ
भीड़ के साथ नहीं
भीड़ के बीच होकर भी
मैं अलग हूँ।
जो बोलता हूँ
वह भीड़ की भाषा नहीं है
जो सोचता हूँ
वह भीड़ से अलग दिशा में जाता है।
भीड़ चलती है
एक रेंगती हुई दीवार की तरह
और मैं उस दीवार के नीचे
कुचले जाने से बचता
दौड़ता हूँ अपनी आत्मा की ओर।
कभी कोई पूछता है —
कहाँ जा रहे हो?
तो मैं कहता हूँ —
इस भीड़ से बाहर
अपने भीतर।
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