महिलाओं के लिए गठित आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) कितनी सफल और कितनी असफल

गुजरात : आज के युग में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम कर रही हैं। चाहे वह कॉर्पोरेट जगत हो, शिक्षा, चिकित्सा, या कोई अन्य पेशा, महिलाएं अपनी योग्यता और मेहनत से अपनी पहचान बना रही हैं। लेकिन कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करना अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। महिलाएं न केवल घर की जिम्मेदारियों को निभाती हैं, बल्कि कार्यस्थल पर भी कई तरह के शोषण और असुरक्षा का सामना करती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का सबसे बड़ा हिस्सा घरेलू हिंसा का है, लेकिन कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न भी एक गंभीर समस्या है। इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने "कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013" (POSH Act) के तहत आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee - ICC) का गठन अनिवार्य किया है। यह समिति कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने, शिकायतों की जांच करने और पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए बनाई गई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह समिति अपने उद्देश्यों में पूरी तरह सफल हो पाई है, या इसमें कुछ कमियां अभी भी बाकी हैं?
आईसीसी का उद्देश्य और महत्व
आंतरिक शिकायत समिति का गठन कार्यस्थल पर महिलाओं को एक सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल प्रदान करने के लिए किया गया है। यह समिति न केवल यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि कार्यस्थल पर महिलाएं बिना डर के अपनी जिम्मेदारियां निभा सकें। 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक संगठन में आईसीसी का गठन अनिवार्य है। यह समिति स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कार्य करती है, ताकि शिकायतकर्ता को न्याय मिले और कार्यस्थल पर एक ऐसा वातावरण बने जहां महिलाएं बराबरी और सम्मान के साथ काम कर सकें। इसके अलावा, आईसीसी की मौजूदगी से कर्मचारियों में यौन उत्पीड़न के प्रति जागरूकता बढ़ती है, जिससे ऐसी घटनाओं में कमी आने की संभावना रहती है।
आईसीसी की सफलता: कुछ वास्तविक उदाहरण
आईसीसी की सफलता के कई उदाहरण हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यह समिति महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सहारा बन सकती है।
उदाहरण 1: कॉर्पोरेट कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न का मामला
2018 में, मुंबई की एक प्रमुख आईटी कंपनी में एक महिला कर्मचारी ने अपने वरिष्ठ सहकर्मी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। उसने कंपनी की आईसीसी में शिकायत दर्ज की। समिति ने त्वरित और निष्पक्ष जांच की, जिसमें साक्ष्य एकत्र किए गए और दोनों पक्षों की बात सुनी गई। जांच के बाद, आरोपी को दोषी पाया गया और उसे नौकरी से निकाल दिया गया। साथ ही, पीड़िता को गोपनीयता और सहायता प्रदान की गई। इस मामले ने कंपनी में अन्य कर्मचारियों को भी यह विश्वास दिलाया कि उनकी शिकायतों को गंभीरता से लिया जाएगा।
उदाहरण 2: शैक्षणिक संस्थान में कार्रवाई
2020 में, दिल्ली के एक विश्वविद्यालय में एक छात्रा ने अपने प्रोफेसर पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया। विश्वविद्यालय की आईसीसी ने मामले की गहन जांच की और प्रोफेसर को निलंबित कर दिया गया। इस घटना ने अन्य छात्राओं को भी अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया और संस्थान में यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता अभियान शुरू किया गया।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि जब आईसीसी निष्पक्ष और सक्रिय रूप से काम करती है, तो यह महिलाओं को न्याय दिलाने और कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
आईसीसी की असफलताएं: चुनौतियां और कमियां
हालांकि, आईसीसी की राह में कई बाधाएं भी हैं, जो इसे पूरी तरह प्रभावी होने से रोकती हैं। कई बार यह समिति अपेक्षित परिणाम देने में असफल रहती है। इसके पीछे कई कारण हैं:
जागरूकता की कमी: कई कर्मचारियों को आईसीसी की मौजूदगी, इसके अधिकारों और शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती। इससे पीड़ित महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज करने से हिचकिचाती हैं।
निष्पक्षता की कमी: कई बार समिति के सदस्य निष्पक्ष रूप से कार्य नहीं करते। विशेष रूप से, जब आरोपी उच्च पद पर होता है, तो समिति पर दबाव बनाया जाता है, जिससे जांच प्रभावित होती है।
संस्थान की छवि बचाने का दबाव: कुछ संगठन अपनी छवि बचाने के लिए शिकायतों को दबाने की कोशिश करते हैं, जिससे पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता।
शिकायतकर्ता की गोपनीयता का उल्लंघन: कई मामलों में शिकायतकर्ता की पहचान उजागर हो जाती है, जिससे उसे सामाजिक बदनामी और प्रताड़ना का डर सताता है।
प्रशिक्षण की कमी: समिति के सदस्यों को यौन उत्पीड़न की सही परिभाषा, कानूनी प्रक्रिया, साक्ष्य एकत्र करने और निष्पक्ष जांच करने का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। इससे जांच प्रक्रिया कमजोर हो जाती है।
देरी से कार्रवाई: शिकायतों पर कार्रवाई में देरी होने से पीड़िता का भरोसा टूटता है और आरोपी को बच निकलने का मौका मिलता है।
सामाजिक डर और चरित्र पर सवाल: कई महिलाएं शिकायत करने से इसलिए डरती हैं, क्योंकि उन्हें समाज में "चरित्र पर सवाल" उठने का डर होता है।
कई संगठनों में आईसीसी सिर्फ कागजी औपचारिकता बनकर रह जाती है। नियमित बैठकें नहीं होतीं, जागरूकता अभियान नहीं चलाए जाते, और समिति सक्रिय रूप से काम नहीं करती। इससे महिलाओं का विश्वास इस व्यवस्था पर कम होता है।
निष्कर्ष
आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जब यह समिति निष्पक्ष, सक्रिय और प्रशिक्षित होती है, तो यह यौन उत्पीड़न के खिलाफ प्रभावी ढंग से काम कर सकती है, जैसा कि उपरोक्त उदाहरणों में देखा गया। हालांकि, जागरूकता की कमी, निष्पक्षता का अभाव, प्रशिक्षण की कमी और सामाजिक दबाव जैसी चुनौतियां इसकी सफलता में बाधा बनती हैं।
आईसीसी को और प्रभावी बनाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, संगठनों को कर्मचारियों के बीच जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, ताकि उन्हें समिति की प्रक्रिया और अधिकारों की जानकारी हो। दूसरा, समिति के सदस्यों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से जांच कर सकें। तीसरा, शिकायतकर्ता की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए। अंत में, समाज में यौन उत्पीड़न के प्रति मानसिकता बदलने की जरूरत है, ताकि पीड़ित महिलाएं बिना डर के अपनी आवाज उठा सकें।
आईसीसी की सफलता और असफलता का दारोमदार इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कितनी गंभीरता और निष्पक्षता के साथ लागू किया जाता है। यदि इन कमियों को दूर किया जाए, तो यह समिति निश्चित रूप से कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सशक्त वातावरण बना सकती है।
रिपोर्टर : चंद्रकांत पूजारी
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