सूरज का सांतवा घोड़ा
डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा रचित लघु उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' में तीन कहानियाँ हैं- एक जमुना की, दूसरी लिली की, और तीसरी सत्ती की. ये तीनों ही कहानियाँ माणिक मुल्ला के शब्दों में ‘प्रेम कहानियाँ' हैं जिन्हें माणिक मुल्ला ने छः दोपहरों में अपने मित्रों को सुनाया है. पहली कहानी का शीर्षक 'नमक की अदायगी था. सुनने में यह शीर्षक प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दारोगा' से मिलता-जुलता भले ही लगता हो परंतु विषय की दृष्टि से वह उससे नितांत भिन्न थी.दूसरी दोपहर की कहानी भी जमुना से ही संबंधित है जिसका नाम है- 'घोड़े की नाल' . इस कहानी में जमुना के विवाह और वैवाहिक जीवन के प्रसंग हैं. जब दहेज के अभाव में उच्च गोत्र के किसी युवक से जमुना का विवाह नहीं हो पाया तो उसकी माँ ने पूजा-पाठ का सहारा लिया और पिता दहेज जुटाने की चिंता में बैंक में ओवरटाइम करने लगे. तीसरी दोपहर' में तन्ना की कहानी है - वही तन्ना जिसका ज़िक्र जमुना के प्रसंग में हो चुका है. इस कहानी का लेखक ने कोई शीर्षक नहीं दिया. परंतु कहानी आरंभ करने से पूर्व गर्मी की दोपहर की उमस का वर्णन किया है जो तन्ना के जीवन में व्याप्त उमस की भूमिका है। तन्ना की माँ उसके बचपन में ही चल बसी थी. चौथी दोपहर की कहानी ‘मालवा की युवरानी देवसेना' अर्थात् लिली की कहानी है. यह लिली वही लड़की है जिसका विवाह तन्ना से हुआ था. ‘पाँचवी दोपहर' की कहानी का शीर्षक है ‘काले बेंट का चाकू'.इसमें सत्ती नाम की लड़की की कहानी है। माणिक मुल्ला आरंभ में ही यह स्पष्ट कर देते हैं कि सत्ती की यह कहानी पिछली दोनों कहानिय नायिकाओं से भिन्न हैं- “लेकिन वह बिल्कुल दूसरी धातु की थी, जमुना से भी अलग और लिली से भी अलग. छठी दोपहर में कोई कहानी नहीं है, सत्ती की कहानी और उसकी मृत्यु की प्रतिक्रिया है. लेखक का कहना है कि सत्ती की मृत्यु से माणिक इतने प्रभावित हुए कि उनकी रचनाओं में मृत्यु की प्रतिध्वनियाँ सुनाई पड़ने लगीं. भाभी-भाई के तबादले के कारण बाहर चले जाने पर अकेले घर में उन्हें डर लगता था. सातवीं दोपहर में कोई नयी कहानी नहीं है बल्कि उस सभी कहानियों का निष्कर्ष है. इन सभी कहानियाँ को प्रेम कहानियाँ भले ही कहा गया है, परंतु ये सब प्रेम कहानियाँ न होकर निम्न मध्यवर्ग की जीवन गाथाएँ हैं..
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