स्वर्णिम अक्षरों से बुनकर कविताएं लिखते थें डॉ. उर्मिलेश शंखधर

 

साहित्य के जगत में लाखों आए और गए है लेकिन कुछ नाम स्वर्णिम अक्षरों में अकिंत हो जाया करते हैं जैसे डॉ. उर्मिलेश शंखधर. जो साहित्य के जानकार रहे हैं  और साहित्य के सागर में डुबकी लगातें  रहे हैं वो सभी  इंसान इस नाम से बखूबी वाकिफ होंगे   . क्योंकि सूफी-संतों की सरजमीं बदायूं के सितारों में प्रख्यात गीतकार उर्मिलेश शंखधार का नाम ना केवल ध्रुव तारे की तरह चांद के एकदम समीप चमकता है बल्कि चांद की चमक को टक्कर देता है .उनके गीत और गजल आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं और सदियों तक रहेंगे भी  . अपने गीतों और लेखनी के माध्यम से उन्होने समाज को आइना दिखाने का भरपूर प्रयास हमेशा ही किया है .आज डॉ. उर्मिलेश शंखधार भले हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी रचनाओं में वो आज भी अपने होने का एहसास करा जाते हैं . जैसे कुछ पंक्तियां है –

 

दिव्यताओं ने जिसको ढाला है

सभ्यताओं ने जिसको पाला है

सारे रिश्ते हैं पुस्तकों जैसे

बेटी रिश्तों की पाठशाला है

 

डॉ. उर्मिलेश शंखधर की ये पक्तियां तबतक जीवित रहेगी जबतक धरती माता – पिता और बेटी रिश्ते का अस्तित्व है . बेटियां बोझ नहीं है, बल्कि बड़ा सहारा हैं ये बात  डॉ. उर्मिलेश शंखधर  बखूबी समझते थे .बेटियां पढ़-लिख कर एक नहीं दो कुल का नाम रोशन करती हैं और समाज को भी दिशा देने का काम करती हैं. कोई भी पर्व बिना बहन-बेटी के अधूरा है. उसमें न तो उल्लास होता है और न ही उत्साह. भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वोच्च महत्व दिया गया है इसीलिए डॉ. उर्मिलेश शंखधार ने बेटियों को प्रभावित करने वाली रचनाएं भी रची है .

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