गुरु पूर्णिमा के अवसर पर वेद व्यास जी के सम्मान में सेमिनार का आयोजन किया गया

समस्तीपुर : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की एक अंगीभूत इकाई आर.बी. कॉलेज, दलसिंहसराय में महाविद्यालय प्रधानाचार्य प्रोफेसर संजय झा की अध्यक्षता में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर वेद व्यास जी के सम्मान में सेमिनार का आयोजन किया गया l कार्यक्रम महाविद्यालय के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग, इतिहास संकलन समिति, उत्तर बिहार एवं डॉ. भोला झा रिसर्च संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की विधिवत शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, मंगलाचरण एवं स्वागत गीत के साथ क्या गया। कार्यक्रम अध्यक्ष ने तमाम अतिथियों का स्वागत सम्मान पाग,चादर,पुष्प गुच्छ एवं प्रतीक चिन्ह से किया। विषय प्रवेश डॉ. राजकिशोर ने कि स्वागत भाषण डॉ अनूप कुमार ने किया l मंच संचालन डॉ. सुनील कुमार सिंह तथा शिवानी प्रकाश के द्वारा किया गया l
सेमिनार में वक्ताओं ने कहा कि भारतीय समाज में गुरु परंपरा अनंत काल से चली आ रही है । गुरु का स्थान पिता के समान होता है। जिस तरह पिता कभी भी अपने बच्चों के लिए बुरा नहीं सोच सकते हैं ठीक उसी तरह गुरु भी अपने शिष्य के लिए कभी गलत नहीं सोच सकते हैं। व्यक्ति का भविष्य गुरु ही संवारते हैं। गुरु हमेशा अपने शिष्यों को सही मार्ग दिखाते हैं। कहा कि जीवन में कई बार व्यक्ति सही गलत की पहचान नहीं कर पाता है। गुरु ही व्यक्ति को सही गलत की पहचान कराते हैं। गुरु का सम्मान करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी असफल नहीं हो सकता है।
मुख्य अतिथि श्री राम किशोर चौधरी ने कहा की गुरु-नारी परंपरा, जिसे गुरु-शिष्य परंपरा के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह परंपरा गुरु (शिक्षक) और शिष्य (छात्र) के बीच एक विशेष संबंध पर आधारित है, जहां ज्ञान, कौशल और आध्यात्मिक ज्ञान का हस्तांतरण होता है। नारी का समाज में बहुत महत्व है। वह न केवल परिवार और घर की धुरी है, बल्कि राष्ट्र निर्माण और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नारी, माँ, बहन, पत्नी, बेटी जैसे विभिन्न रूपों में, समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
नारी, परिवार और समाज की नींव है। वह घर को व्यवस्थित रखती है, बच्चों को संस्कार सिखाती है और परिवार को एकजुट रखती है। नारी, राष्ट्र निर्माण और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और राजनीति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रूप से योगदान करती है।
नारी संस्कार और परंपराओं की वास्तविक संरक्षिका होती है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में इन मूल्यों को हस्तांतरित करती है।
नारी सशक्तीकरण और समानता, स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण के समान अवसर मिलने चाहिए।
शिक्षा, महिलाओं को सशक्त बनाने और समाज में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए महत्वपूर्ण है। नारी, समाज का अभिन्न अंग है और उसका महत्व शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हमें नारी का सम्मान करना चाहिए और उसे समाज में समान अवसर प्रदान करने चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार रणधीर मिश्रा ने गुरु-शिष्य परंपरा और सनातन संस्कृति पर जोर देते हुए कहा की गुरु मार्गदर्शक होते हैं, गुरु हमेशा ही शिष्य की रक्षा करते हैं। इसलिए गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु ज्ञान देने वाला होता है। जिनका गुरु नहीं अब मनुष्य नहीं बन सकता। मार्गदर्शक गुरु होते हैं और सभी लोगों के गुरु कोई न कोई होता है। यह परंपरा न केवल अकादमिक शिक्षा पर, बल्कि शिष्य के आध्यात्मिक और नैतिक विकास पर भी जोर देती है l इस सेमिनार में गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व, वेद व्यास जी के योगदान, और ज्ञान के प्रसार में गुरु की भूमिका पर चर्चा की l
हमारी भारतीय संस्कृति के सनातन जीवन मूल्यों का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष है यह गुरु-शिष्य परम्परा। वैदिक भारत के राष्ट्र जीवन में सद्ज्ञान व सुसंस्कारों का बीजारोपण करने वाली इसी गुरु-शिष्य परम्परा ने हमारे भारत को दुनिया का सर्वाधिक महान राष्ट्र बनाकर ‘‘विश्वगुरु’’ व ‘‘सोने की चिड़िया’’ की पदवी से विभूषित किया था। भारत को “जगद्गुरु” की उपमा इस कारण ही दी गयी थी कि उसने न केवल राष्ट्र जीवन अपितु विश्व मानव का सशक्त मार्गदर्शन किया था।
विश्व में यदि कोई सर्वाधिक प्रभावशाली सांस्कृतिक क्रांति हुई है तो केवल उपनिषदों की भूमि-भारत से। गुरु-शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष है।
डॉ. भोला झा ने संगोष्ठी में खुद पर चर्चा करते हुए वेद व्यास जी द्वारा वेदों का संकलन, महाभारत और पुराणों की रचना, और गुरु के रूप में उनके महत्व पर चर्चा की l इस विषय में गुरु की भूमिका, शिष्य के जीवन में गुरु का प्रभाव, और गुरु-शिष्य संबंध के पारंपरिक मूल्यों पर प्रकाश डाला l
संस्कृत के विद्वान प्रोफेसर रमेश झा ने कहा की छात्रों को गुरु पूर्णिमा के महत्व को समझना ज़रूरी है। व्यास के अर्थ को समझते हुए कहा कि केंद्र को स्पर्श करती हुई परिधि के दो बिंदुओं को मिलानेवाली रेखा व्यास है । उन्होंने सुंदरी नामक नारी की गुरु-शिष्य परंपरा की चर्चा की l
तिरहुत अकादमी के पूर्व प्राचार्य अर्जुन कुमार सिंह ने कहा की गुरु और पिता दोनों का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। गुरु ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जबकि पिता परिवार के संरक्षक और मार्गदर्शक होते हैं l नारी जगत की जननी हैl
महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रोफेसर संजय झा ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि आज वेबिनार, संगोष्ठी की जगह गुरु शिष्य परम्परा की चिंतनशाला होनी चाहिए l भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरु-व्यास परंपरा की व्याख्या की l उन्होंने ज्ञान के ऋषि (सूर्य) और कृषि (व्यास) के पारंपरिक ज्ञान के अध्ययन पर जोर दिया l अनुक्रमणिका के संदर्भ में वेदों की रचना में महिलाओं के योगदान पर चर्चा की l कई विदुषी महिलाओं ने ऋषिका के रूप में मंत्रों की रचना की, जैसे कि घोषा, अपाला, विश्ववारा और लोपामुद्रा। इसके अतिरिक्त, महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने का अधिकार था, और वे सभाओं में भी भाग लेती थीं। कई महिलाओं ने मंत्रों की रचना की और उन्हें ऋषि का दर्जा प्राप्त हुआ। घोषा, अपाला, विश्ववारा और लोपामुद्रा जैसी महिलाएं प्रसिद्ध ऋषिकाएँ थीं।
वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने और यज्ञ जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने का अधिकार था।
महिलाएं सभाओं में भी भाग लेती थीं और अपने विचार व्यक्त करती थीं, जो उस समय की सामाजिक व्यवस्था में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
गृहस्थ जीवन में भूमिका:
वैदिक साहित्य में, महिलाओं को गृहस्थ जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, और उन्हें गृहणी के रूप में वर्णित किया गया है। महिलाएं कृषि कार्यों में भी सहयोग करती थीं, और कुछ महिलाएं चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भी पारंगत थीं.l वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी मजबूत थी और उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। वे न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेती थीं, बल्कि शिक्षा प्राप्त करने और अपने विचार व्यक्त करने में भी स्वतंत्र थीं। कई महिलाओं ने ऋषिका के रूप में वेदों की रचना में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे वैदिक साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान स्थापित हुआ।
शोध छात्र प्रशांत कुमार,नीतीश कुमार झा,दीक्षा कुमारी तथा स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं ने अपने-अपने शोध पत्र पढ़े l
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में सैकड़ों छात्र, शिक्षक, और शिक्षाविद ने भाग लिया l राष्ट्रगान की सामूहिक प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।
रिपोर्टर : प्रवीण प्रकाश
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