बीते 5 नवम्बर से लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो गई है. लोग बड़े ही धूमधाम से महापर्व छठ की तैयारियों में लगे थे. वहीं तभी छठ के पहले दिन एक ऐसी दुखद खबर आई की पूरे देश में छठ का उत्साह अवसाद में बदल गया. छठ. पूजन-अर्चन के लिए स्वच्छ किए गए चमकते-दमकते घाट अचानक ही उदास हो गए. संस्कृति प्रेमियों के चेहरे मुरझा गए. लोकगीत गुमसुम हो गए. मानो.. हर एक एक इंसान रो रहा हो. और कह रहा हो ऐसा. क्यों हुआ...जी हाँ.. हम बात कर रहें पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित लोकप्रिय लोक गायिका शारदा सिन्हा की...इनका नाम सुनते ही हमारे सामने एक तस्वीर आने लगती हैं. सरदा गर्वीले चौड़े माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी. माँग में सिंदूर. सौभाग्य का टीका. गले में लंबी माला. सीधे पल्ले की साड़ी. चश्मे के भीतर से झाँकतीं बड़ी-बड़ी काली आँखें. बड़े से बड़े दुख और तनाव को मुँह चिढ़ाती सहज सरल मुस्कान. दिल में गहराई तक उतरती सादगी भरी आवाज़. परंपरा और संस्कृति की ध्वज पताका फहराता हुआ गरिमापूर्ण व्यक्तित्व.. कुछ ऐसी तस्वीर सामने आती हैं..जो सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं... तो आइए लोकप्रिय लोक गायिका शारदा सिन्हा के बारे में जानते हैं...
पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित लोकप्रिय लोक गायिका शारदा सिन्हा की. वही शारदा जी जिन्हें बिहार की स्वर कोकिला कहा जाता है.. अंतिम साँस तक जो छठ के गीत गाती रहीं, अफ़सोस! वे अब हमारे बीच नहीं रहीं. 5 नवंबर, 2024 को छठ पर्व के पहले दिन दिल्ली एम्स में उन्होंने कैंसर से जूझते हुए 72 वर्ष की उम्र में अंतिम साँस ली। शायद छठी मैया ने ही अपनी दुलारी बिटिया को अपने पास बुला लिया..
लोक जीवन को दिया अमिट आलोक
शारदा सिन्हा जी जीवन भर लोकगीतों के माध्यम से लोक जीवन, लोक संस्कृति और लोक गायकी को अमिट आलोक प्रदान करती रहीं।
पहिले पहिले हम कईनी छठी मैया बरत तोहार
करिहों क्षमा छठी मैया भूल चूक ग़लती हमार..
सकल जगतारिणी हे छठी माता
सबक शुभकारिणी हे छठी माता
उगअ हो सुरुज देव..
केलवा के पात पर उग ले सुरुज देव..
ऐसे तमाम गीतों को अप्रतिम स्वर देकर लोकमानस और लोककंठ में रच- बस जाने वाली शारदा सिन्हा जी ने मैथिली गीतों के जरिए शुरूआत की थी। फ़िर हिंदी, भोजपुरी, बज्जिका और मगही गीत भी गाए। आपने अपने बड़े भाई की शादी के नेग के लिए पहला गीत गाया और यही गीत आपके पेशेवर जीवन का पहला रिकॉर्ड गीत हुआ।
आपने छठ गीतों से हर घर-हर दिल में खास जगह बनाई। बिहार के लोकगीतों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। होली और विवाह गीतों को सँजोने में महती भूमिका निभाई। आपकी गायकी में बिहार से पलायन और महिलाओं के संघर्ष को भी काफी जगह मिली है। मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन तथा गैंग्स ऑफ़ वासेपुर जैसी सुप्रसिद्ध फिल्मों में भी आपने गीत गाए जिन्हें खासी सराहना मिली।
शारदा जी ने मुझ जैसी महिला को सार्वजनिक मंच से गाने के द्वार खोले
शारदा सिन्हा जी के निधन से व्यथित लोक गायिका चंदन तिवारी ने उन्हें याद करते हुए लिखा कि शारदा जी ने मुझ जैसी महिला को सार्वजनिक मंच से गाने के द्वार खोले। शारदा जी से पहले बिहार के समय-समाज का जो दौर था, उसमें महिलाओं को सार्वजनिक मंच से गाने की छूट नहीं थी। गाने वाली महिलाओं को समाज अच्छी दृष्टि से नहीं देखता था। बिहार जैसे राज्य में महिलाओं के लिए लोक गायन का दायरा घर-परिवार में पारंपरिक गायन के अलावा बाईजी, थिएटर या फिर चुनिंदा कलाकारों के लिए आकाशवाणी तक ही सीमित था। शारदा जी ने इसे तोड़ा। आज सैकड़ों लड़कियाँ और महिलाएँ गायन कर रही हैं।
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