सेमर और इमारती लकड़ी की अवैध कटाई,ग्रामीणों को फंसाकर माफियाओं का कारोबार

सरगुजा - नीलगिरी - सेमर और इमारती लकड़ी की अवैध कटाई,ग्रामीणों को फंसाकर माफियाओं का कारोबार – प्रशासन पर गंभीर सवाल – प्रशासन पर गंभीर सवाल जिले के बतौली ब्लॉक में लंबे समय से नीलगिरी,सेमर और अन्य इमारती लकड़ियों की अवैध कटाई और तस्करी का व्यापार खुलेआम जारी है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि तस्कर सीधे-साधे, भोले-भाले ग्रामीणों को कम दाम में गुमराह करके पेड़ कटवाते हैं और बाद में वही लकड़ी मोटे दामों में बेचते हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह धंधा केवल स्थानीय स्तर पर ही सीमित नहीं है। इसमें उत्तर प्रदेश और आसपास के बड़े लकड़ी माफिया भी शामिल हैं। वहीं, प्रशासन और वन विभाग की मिलीभगत के कारण यह अवैध कटाई लंबे समय तक बिना रोकटोक के चलती रही। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार उन्होंने अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन शिकायतों पर कार्रवाई न होना प्रशासन की कथित सांठगांठ को उजागर करता है।

बुधवार को बतौली थाना पुलिस ने दो वाहनों को लकड़ी से भरा हुआ जब्त किया, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल दिखावा कार्रवाई है। असली बड़े माफिया अब भी सक्रिय हैं और जंगलों का विनाश जारी है। इस अव्यवस्था से न केवल पर्यावरण पर गंभीर संकट है, बल्कि वन्यजीवों का अस्तित्व और जलस्रोतों का संरक्षण भी खतरे में है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि माफिया अपने फायदे के लिए कमीशनखोरी में भी लिप्त हैं। कई अधिकारियों ने अवैध कटाई में खुलकर सहयोग किया, जिससे वन संपदा तेजी से खत्म हो रही है। लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या प्रशासन और वन विभाग सिर्फ छोटे-मोटे लोगों को फंसाकर मामले को दबा रहे हैं और बड़े माफियाओं को बचा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि तुरंत कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो सरगुजा के हरे-भरे जंगल और प्राकृतिक संसाधन जल्द ही गंभीर संकट में पड़ जाएंगे। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर शासन-प्रशासन ने अवैध कटाई और तस्करी पर कार्रवाई नहीं की तो वे बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

इस मामले में शासन से कई सवाल उठते हैं – क्या जंगलों और वन संपदा की सुरक्षा के लिए निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया जा रहा? क्या अवैध कटाई में अधिकारियों की मिलीभगत है? और आखिरकार क्या प्रशासन अपनी नींद से जागेगा या सिर्फ दिखावे के लिए कार्रवाई करेगा?

बतौली के हरे-भरे जंगलों को बचाने की यह घड़ी निर्णायक है। अब प्रशासन और शासन को तय करना होगा कि वे वन संपदा, ग्रामीणों और पर्यावरण के पक्ष में खड़े हैं या फिर माफिया और कमीशनखोरी की मिलीभगत में लिप्त रहेंगे

रिपोर्टर - रिंकू सोनी 

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