सवालों में लखनऊ नगर निगम अब अपना नाला खुद साफ करो

सवालों में लखनऊ नगर निगम अब अपना नाला खुद साफ करो

सवालो में लखनऊ नगर निगम की कार्रवाई 

हम नहीं करेंगे अब जनता करे नालों की सफाई 

दुकानदारों ने किया अपना अपना नाला साफ 

दुकानदार बने सफाईकर्मी ये कैसा इन्साफ 

सड़क पर जगह जगह लगा है सिल्ट का अंबार 

ये कैसी सफाई व्यवस्था हो रहा अत्याचार 


लखनऊ नगर निगम यानि राजधानी का नगर निगम पर वो नगर निगम के जिसके मंत्री भी राजधानी लखनऊ  बैठते हैं जहाँ मेयर भी भाजपा की हैं जहाँ सरकार भी भाजपा की है और अगर तब भी राजधानी लखनऊ के हालात खस्तेहाल हैं और आपको जगह जगह दिख जायगा कूड़े का अंबार दिख रहा है तो और परेशान मत होइए ये सब व्यवस्था सबके सामने है


और ये हालात तब हैं जब करोड़ो का बजट सरकार से मिलता है सफाई के लिए कार्यदायी संस्था भी बदलती रहती है पर नहीं बदलती लखनऊ की तस्वीर। सबसे बड़ी बात कि बरसात के पहले नालों की सफाई की बात आती है जिसके लिए करोडो रूपये खर्च भी होतें हैं पर उसके बाद भी जलभराव का नज़ारा आपको बहुत जगह नज़र आ जायगा और तो और पिछले साल बारिश के मौसम में विधानसभा के अंदर पानी चला गया था जिसके कारण जमकर लखनऊ नगर निगम की जमकर बदनामी हुई थी और इस बार फिर एक मामला चर्चा में आ गया है जी हाँ राजधानी लखनऊ के पुरनिया चौराहे के पास सड़क के पीछे बने नालों की सफाई की जिम्मेदारी इस बार लखनऊ नगर निगम द्वारा स्थानीय पटरी दुकानदारों को दे दी गयी है। पटरी दुकानदारों को कहा गया कि अगर यहाँ पर अपनी दुकान लगाकर रहना है तो अपने अपने पीछे बने नाले की खुद सफाई करो।  गरीब दुकानदार भी मजबूरी में नाले को साफ करने उतर पड़े जिसमे कोई दुर्घटना भी हो सकती थी किसी की जान भी जा सकती थी यहाँ तक कि नाला साफ करने के दुकानदारों ने अपने पैसे से मजदूर तक बुलाये थे। ये बात कोई मेरे मन की नहीं ये लोगों का कहना है कि नगर निगम लखनऊ में हमें पटरी दुकानकार से नाला सफाई कर्मी बना डाला। और तो और निकली हुई सिल्ट भी  दुकानों और आँखों के सामने भी है चार दिन के बाद भी अब तक वो सिल्ट नहीं उठी। लोगों उसी बदबूदार और बीमारी को आमंत्रण देती सिल्क के सामने अपना काम करने उसके पास बैठने को मजबूर हैं। अब ऐसी व्यवस्था और जगह जगह जमी सिल्ट आपको बता ही देती है कि नगर निगम लखनऊ राजधानी वासियों के लिए कितना फिक्रमंद है तो परेशान मत होइए अगर आपका नाला भरा हुआ है तो खुद ही साफ़ कर लीजिए। जब हमने इस मामले पर स्थानीय दुकानदारों से बात की तो उन्होंने कहा हम बोल तो देंगे ऐसा न हो कल हमारी जीविका को ही उजाड़ दिया जाये पर कुछ दुकानदारों ने दुखी होकर अपनी आपबीती बता ही डाली। 

 

दुकानदारों की व्यथा है कि ये सफाईकर्मी बनने को मजबूर है नाला भी साफ़ कर लेंगे क्योंकि ये सब पटरी दुकानदार है गरीब है मजबूर है सिस्टम से नहीं लड़ सकते। सबको पता है कि नालों की सफाई के लिए बाकायदा बजट दिया जाता है उसके बाबजूद अगर नालों की सफाई पटरी दुकानदारों से कराई जा रही है तो ये नाले सफाई का बजट किसकी जेब में जा रहा है।  सवाल तो बड़े है और जरुरी भी पर इन सवालो का जबाब कौन देगा इस मामले का निस्तारण कौन करेगा ये अभी प्रश्न है। तो लोग दुखी है परेशान है इस भीषण गर्मी में जीविका चला रहे हैं और नाले भी साफ कर रहे हैं उनकी आँखों में आक्रोश भी है और आंसू भी हैं तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं?

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.