डाॅ.राधेश्याम नापित को मिला 2024 का गुणाकर मुले राष्ट्रीय सम्मान एवं 5 लाख रुपए का पुरस्कार

शहडोल - डाॅ.राधेश्याम नापित का जन्म 5/7/1972 में एक  ग्रामीण नापित परिवार हुआ है जीवन बहुत संघर्षमय था पढ़ाई के लिए घर से निकल कर बी.एस-सी,की पढ़ाई करने के लिए गांव से शहर आए और एम एस-सी की पढाई के लिए शहर शहडोल में एक फैक्टरी में  छोटी आरी से पानी डाल डाल कर लोहा काटना,रबर की पाइप को मास्क लगाकर काटना, मालिक की भाषा थी कयों बे राधेश्याम आगया काम पर,जी भैया। उस भाषा की पीडा को बता नही सकता। ओवर टाइम  तक काम करना मेहनत और लगन से। पढ़ाई की वह भूख ने ट्रक बस के ड्राइवरों के मेहनत को देख कर खुद को समझाना और समाज,देश सेवा भाव पैदा करना कि हजारो किलोमीटर की यात्रा कर ठंडी,गर्मी बरसात साथ में रात दिन जागकर लगातार चलते रहना और मंजिल तक पहुंचना मेरे जीवन के सबसे बडे उदाहरण ने मुझे उठाया और जगाया। सडक पर रात्रि में सफाई,स्वच्छाता करने का कार्य करने वाले लोगों को देखकर उनके अनेके कष्टो को महसूस कर,मैने समझा कि लक्ष्य जितना बडा होगा मेहनत उसी के अनुसार करनी पडेगी। गरीबी बेकारी को दूर करने के लिए एक ही सूत्र है वह है अध्ययन। उपरोक्त इमानदारी से सेवा भाव ने सोने नहीं दिया। यह मन की उच्च लालशा ने सारे कठिनाई  के पहाड  को चीरते हुए फिर एम एस-सी की पढ़ाई  और पी एच-डी की डिग्री ली कठिनाईयों के बहुत कहानिया है। मुश्किलों का सामना करना आदत पड़ा गया था नकारात्मक प्रभाव को सकारात्मक कार्य मे बदलना और अभाव, बेकारी के महासागर से उबरने के लिए एक सूत्र  था पढ़ाई के लिए मेहनत। दर दर की ठोकर, बेज्जती को सहन कर पढ़ाई पूरी की, प्राइवेट महाविद्यालय में मौखिक  परीक्षा पास  कर 1000 रूपए  महीने में पढाना प्रारम्भ किया। कम तनख्वाह मे भी अध्यापन कराना उत्साह के साथ, पर वहां पर  धोखेबाजी मिली , पर हार नहीं माना, उसके बाद ईश्वर का सहारा मिला,शासकीय महाविद्यालय जयसिंहनगर मे अतिथि विद्वान के रूप  में पढाने का अवसर मिला कई वर्षों तक का संघर्ष रहा। विश्वस्वारूपा ईश्वरावतार भगवान शिव के रूप मे एक देव रुप  महान पुरुष एवं व्यक्तित्व माननीय मुख्यमन्त्री श्री श्री 108 श्री शिवराज सिंह चौहान  ने सहायक प्राध्यापक भर्ती निकाल कर मेहनती गरीब परिवार के भटके लोगों को एक मुख्य धारा से जोड़ा,उनमे से मै भी हूं। सम्मान कैसे मिला:- वैज्ञानिकी कार्य में वनस्पति शास्त्र की ,पुस्तक संख्या-8, (500 पेज से ऊपर की प्रत्येक पुस्तक),एडिट पुस्तक 6 अंतर्राष्टीय शोध पत्र प्रकाशित-20, (02 शोध पत्र प्रकाशित आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के एकेडेमिया प्रेस में ) राष्ट्रीय  शोध पत्र प्रकाशित 6, अंतर्राष्टीय शोध पत्र बाचन किया -10,  राष्ट्रीय शोध पत्र बाचन किया- 20, वर्कशाप 02, अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार कराया(आयोजन सचिव)-01,अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार कराया -1 राष्ट्रीय वेबिनार कराया 03. पी एच.डी में मार्गदर्शन: -02 एन एस एस:- कार्यक्रम अधिकारी 4 वर्षो से। (एक स्वयंसेवक बुढार महाविद्यालय का इतिहास  रचा नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड किया मेरे मार्गदर्शन में) डाॅ.राधेश्याम नापित का कहना है कि यह राष्ट्रीय सम्मान का मै अकेला हकदार नहीं हूँ  इसमें उनके माता पिता,परिवार,गुरुओं में डाॅ दर्शनठाकुर मां स्वरुप,डाॅ संतोष कुमार मिश्रा,डाॅ अमित निगम (छात्रावास  मुहैय्या कराये),डाॅ भरत सरण सिंह (दादा ने जीवन जीने की शैली दिये), प्राचार्य डाॅ आर सी मिश्रा, डाॅ एस के सक्सेना,और डाॅ मुकेश तिवारी सर जी ने (मुुझ पर दया किये) डाॅ धर्मेद्र द्विवेदी भैया ने (सहारा दिया),डा विनय सिंह ने (मदद किये) डाॅ के कुमार (अंतिम गुरु के रूप में,सहायक प्राध्यापक बनने मे, ढूबते का सहारा बने),डाॅ एन के श्रीवास्तव (पुस्तक में मदद किये) आप लोगों ने साक्षात ईश्वर बनकर मेरे जीवन को एक नया जीवन दिया और पं शम्भू नाथ शुक्ला शासकीय महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक,एवं कर्मचारी वर्गो,एवं मित्रों का सहयोग, प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में मेरे इस सफतम जीवन के सफर में बहुत  बड योगदान रहा है।  महाविद्यालय बुढ़ार के प्राचार्य प्रो. डाॅ गंगा मिश्रा,डाॅ अनिल उपाध्याय ,डाॅ एन मानिकपुर,डॉ बी एन उपाध्याय श्री टीकम नायक,रीतेश सिंह एवं समस्त प्राध्यापकों एवं सभी कर्मचारियों का आशीर्वाद मेरे साथ रहा है।

रिपोर्टर - रजनीश शर्मा

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