सहरसा की चौपालों में गूंजने लगीं महिला संवाद की नई आवाज़ें

सहरसा : जिले के गाँवों में इन दिनों एक नई हलचल है। जहाँ कभी महिलाओं की आवाज़ें सीमित थीं, वहाँ अब संवाद और बदलाव की गूँज सुनाई दे रही है । यह बदलाव ‘महिला संवाद’ के माध्यम से संभव हुआ है, जो केवल एक सरकारी योजना से आगे बढ़कर सामाजिक जागृति और आंदोलन का रूप ले चुका है।  एक समय था जब यह पहल कुछ गाँवों और गिनी-चुनी महिलाओं तक सीमित थी। लेकिन आज, इस अभियान ने 1468 ग्राम संगठनों के ज़रिए दो लाख पच्चीस हज़ार से अधिक महिलाओं को जागरूकता और सशक्तिकरण का मंच दिया है। 25 मई 2025 को, महिला संवाद कार्यक्रम ने ज़िले भर के 24 स्थानों पर आयोजित होकर 6000 से अधिक महिलाओं को एकत्र किया। ये आयोजन केवल बैठकें नहीं थे, बल्कि महिलाओं की आकांक्षाओं, समस्याओं और अधिकारों को अभिव्यक्ति देने वाले मंच बन गए। कार्यक्रमों में हर उम्र की महिलाओं ने अपनी आवाज़ को मंच दिया। किशोर लड़कियों की आँखों में भविष्य के सपने थे, तो पंचायत प्रतिनिधियों के विचारों ने राजनीतिक चेतना का परिचय दिया। आत्मविश्वास से भरी महिलाओं ने अपनी समस्याओं को उजागर किया और समाधान की ओर कदम बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया।

तकनीक ने निभाई अहम भूमिका: महिला संवाद कार्यक्रम में तकनीकी पहलुओं का भी विशेष योगदान रहा। मोबाइल संवाद रथ—12 विशेष वैन, जो गाँव-गाँव जाकर महिलाओं तक योजनाओं की जानकारी और प्रेरणा पहुँचा रही हैं। इन वैनों में लगी एलईडी स्क्रीन पर योजनाओं की व्याख्या, प्रेरक कहानियाँ और जागरूकता संदेश प्रसारित किए गए। यह प्रयास महिलाओं को सशक्त बनाते हुए उनकी पहचान को नया आयाम दे रहा है।महिला संवाद ने महिलाओं को केवल बोलने का अवसर ही नहीं दिया, बल्कि सवाल उठाने का भी साहस दिया। पेंशन में कटौती, दूरस्थ कॉलेज, सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था जैसी समस्याओं पर खुलकर चर्चा हुई। ये सवाल अब सिर्फ़ नारों तक सीमित नहीं, बल्कि नीति-निर्माण की दिशा में कदम बन गए हैं। महिला संवाद ने ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भरता और नेतृत्व की नई राह दिखाई है। यह पहल अब केवल जागरूकता अभियान नहीं, बल्कि एक स्थायी सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक बन चुकी है। महिलाओं की आवाज़ अब न केवल सुनी जा रही है, बल्कि समाज और शासन में बदलाव लाने का आधार भी बन रही है।

रिपोर्टर : अजय कुमार

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