पंजाबी साहित्य के अमर शायर शिव कुमार बटालवी

शिव कुमार बटालवी (23 जुलाई 1936 – 8 मई 1973) पंजाबी साहित्य के एक महान कवि थे, जिन्हें उनकी गज़ल और प्रेम कविताओं के लिए जाना जाता है। उनकी कविताओं में दर्द, विरह, प्रेम और जज़्बातों की ऐसी अभिव्यक्ति मिलती है, जिसने पंजाबी कविता को एक नया मुकाम दिया। शिव कुमार बटालवी का जन्म पंजाब के छोटे से कस्बे बटाला में हुआ था। उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए युवा पीढ़ी की भावनाओं को बखूबी प्रस्तुत किया। उनका जीवन खुद एक त्रासदी की तरह था — वे मात्र 36 साल की उम्र में ही इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन उनकी कविताएं अमर हो गईं। शिव कुमार की कविताओं में प्रेम, विरह, दर्द और प्रकृति का सुंदर मेल मिलता है। उनकी भाषा सरल, लेकिन भावों से गहरी होती थी।

प्रमुख रचनाएँ

पहला सच (The First Truth)
लोहड़ी (Lohri)
साडा वासदा पंजाब (Our Everlasting Punjab)
साडे विच सोंधी बूंद (A Scented Drop Among Us)

उनकी ग़ज़लों और कविताओं में एक अनूठा दर्द और रोमांटिक झुकाव दिखाई देता है, जो सीधे दिल को छू जाता है।

इक कुड़ी जिहदा नाम मुहब्बत
गुम है गुम है गुम है!
साद मुरादी सुहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है

सूरत उसदी परीआं वरगी
सीरत दी ओह मरीअम लगदी
हस्स्दी है तां फुल्ल झड़दे ने
टुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लम्म- सलम्मी सरू कद्द दी
उमर अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणां दी गल्ल समझदी!
गुमियां जनम जनम हन होए...
गुमियां जनम जनम हन होए
पर लगदै जिउं कल दी गल्ल है
इउं लगदै जिउं अज दी गल्ल है
इउं लगदै जिउं हुण दी गल्ल है

हुणे तां मेरे कोल खड़ी सी।
हुणे तां मेरे कोल नहीं है
इह कील छल है है इह केही भटकण
सोच- मेरी हैरान बड़ी है
नज़र मेरी हर आउंदे जांदे
चिहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है
सांझ ढले बाज़ारां दे जद
मोड़ां ते खुशबो उग्गदी है
विहल, थकावट, बेचैनी जद
चौराहियां ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहाई विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है!
ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है!
हर छिन मैनूं इउं लगदा है
हर दिन मैनूं इउं लगदा है
जुड़े जशन ने भीड़ां विचों
जुड़ी महक दे झुरमुट विचों
उह मैंनूं आवाज़ दवेगी
मैं उहनूं पहचाण लवांगा
उह मैंनूं पहचाण लवेगी
पर इस रौले दे हड़ विचों
कोई मैनूं आवाज़ ना देंदा
कोई वी मेरे वल्ल ना विंहदा
 
पर खौरे किउं टपला लगदा...
पर खौरे किउं टपला लगदा
पर खौरे किउं झउला पैंदा
हर दिन हर इक भीड़ जुड़ी चों
बुत उहदा जिउं लंघ के जांदा
पर मैंनूं ही नज़र ना आउंदा
गुम गई मैं इस कुड़ी दे
चिहरे दे विच गुमियां रहिंदा
उस दे ग़म विच घुलदा रहंदा
उस दे ग़म विच खुरदा जांदा!
ओस कुड़ी नूं मेरी सौंह है
ओस कुड़ी नूं आपणी सौंह है

ओस कुड़ी नूं सभ दी सौंह है...
ओस कुड़ी नूं सभ दी सौंह है
ओस कुड़ी नूं जग दी सौंह है
ओस कुड़ी नूं रब दी सौंह है
जे किते पढ़दी सुणदी होवे
जिउंदी जां उह मर रही होवे
इस वारी आ के मिल जावे
वफ़ा मेरी नूं दाग ना लावे
नहीं तां मैंत्थों जीआ ना जांदा
गीत कोई लिखिआ ना जांदा!

इस कुड़ी जिदा नाम मुहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी- सुहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है 

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