वर्षों की तकलीफों और बलिदानों की कहानी

शिवपुरी - “महिमा शर्मा – एक ऐसा नाम जो संघर्ष और धैर्य की अनोखी कहानी बयां करता है। छत्तीसगढ़ न्यायिक सेवा परीक्षा में दूसरी रैंक हासिल करना उनके लिए सिर्फ सफलता नहीं, बल्कि वर्षों की तकलीफों और बलिदानों की कहानी है।महिमा ने 7-8 बार मुख्य परीक्षा दी, 5 इंटरव्यू दिए, और हर बार प्रारंभिक परीक्षा पास की। लेकिन हर बार जब उनका नाम अंतिम सूची में नहीं आया, तो वो न केवल निराश हुईं, बल्कि खुद से सवाल भी किया कि क्या उनका सपना कभी पूरा होगा। बार-बार हार और असफलताओं के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी आंखों में सपनों की आग थी, और दिल में दृढ़संकल्प कि वह यह लड़ाई आखिर तक लड़ेंगी।उनकी यात्रा केवल परीक्षा तक सीमित नहीं थी, बल्कि समाज की उम्मीदों और व्यक्तिगत संघर्षों से भरी हुई थी। जब चारों ओर से ताने सुनने को मिलते थे, जब परिवार और समाज के दबाव ने उनकी आत्मा को झकझोर दिया, तब भी उन्होंने अपनी ताकत को टूटने नहीं दिया। आज, महिमा शर्मा सिर्फ अपनी जीत की वजह से नहीं, बल्कि अपनी असफलताओं से लड़ने के जज़्बे के लिए एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी उन लोगों के लिए एक चिंगारी है, जो अपने सपनों को हार की धूल में खोने देते हैं। महिमा कहती हैं, “मैंने बार-बार खुद को टूटते हुए देखा, लेकिन हर बार मैंने खुद को याद दिलाया – कोशिश तब तक जारी रहेगी, जब तक जीत मेरी झोली में न आ जाए।”सच में, महिमा शर्मा धैर्य और संघर्ष का दूसरा नाम हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर आप असफलताओं को झेलने का साहस रखते हैं, तो सफलता आपकी दहलीज़ पर ज़रूर आएगी। महिमा की यात्रा हर उस दिल में फिर से उम्मीद जगाएगी, जो हार की वजह से अपने सपनों से समझौता कर चुका है।”

रिपोर्टर - ऋषि गोस्वामी 

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