सीता स्वयंवर में शिव धनुष टूटते ही गूंजा जय श्रीराम का नारा

सोनभद्र : ओबरा में राम मंदिर स्थित श्रीरामलीला समिति के मंचन में गुरुवार को सीता स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम भगवान शिव का धनुष तोड़ देते हैं। धनुष टूटते ही भगवान श्रीराम के जयघोष गूंजने लगे। इसके बाद भगवान परशुराम और लक्ष्मण के बीच संवाद से दर्शक रोमांचित हो उठे। सीता स्वयंवर में भाग लेने के लिए 10 हजार राजा और राजकुमार आए हैं। स्वयंवर में लंकापति रावण और बाणासुर भी पहुंचते हैं। राजा जनक और रानी सुनयना की शर्त के अनुसार सभी राजा शिव धनुष उठाने का प्रयास करते हैं, लेकिन असफल हो जाते हैं। इससे क्रोधित राजा जनक कहते हैं कि क्या इस धरती पर कोई ऐसा वीर नहीं है, जिससे वह अपनी पुत्री का विवाह कर सकें। यह बात सुनकर लक्ष्मणजी क्रोध में अपना धनुष पटक देते हैं। वह श्रीराम से कहते हैं कि यदि उनकी आज्ञा हो तो वह धनुष को वह कमल की डंडी के समान तोड़कर फेंक दें। तब गुरु विश्वामित्र अयोध्या के राजकुमार रामचंद्र को आदेश देते हैं कि वह जाकर धनुष तोड़ दें। रामचंद्र जी जैसे ही धनुष उठाते हैं वह टूट जाता है। शिव धनुष के टूटते ही देवी-देवता पुष्पवर्षा करते हैं। माता सीता और श्रीराम का विवाह होता है। धनुष के टूटने की टंकार सुनकर भगवान परशुराम विचलित हो उठते हैं और स्वयंवर में पहुंचते हैं। शिव जी के टूटे धनुष को देखकर वह क्रोध करते हैं। इस पर लक्ष्मण भी क्रोधित हो उठते हैं और दोनों के बीच तीखा संवाद होता है। लक्ष्मण जी अपने आत्मविश्वास और वीरता का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम कोई छुई-मुई के फूल नहीं हैं, जो किसी की ऊँगली दिखाने से डर जाएँ। वे कहते हैं, हम अवश्य बालक हैं, लेकिन फरसे और धनुष-बाण हमने भी कम नहीं देखे हैं, इसलिए हमें नासमझ या डरपोक न समझा जाए। परशुराम जी के अपशब्दों और आक्रोशित वचनों को सुनकर विश्वामित्र जी भी उनकी बुद्धि पर तरस खाते हैं। परशुराम जी बार-बार कहते हैं कि वह लक्ष्मण को पलभर में मार देंगे, लेकिन विश्वामित्र जी उनके क्रोध और अज्ञानता को देखकर हृदय में मुस्कराते हैं। विश्वामित्र जी परशुराम के शब्दों को सुनकर मन ही मन मुस्कराते हुए सोचते हैं, यह गधि-पुत्र को चारों ओर केवल हरा ही हरा दिखाई दे रहा है, लेकिन जिन्हें वह गन्ने की खाँड़ समझ रहे हैं, वे तो दरअसल लोहे से बनी तलवार  की तरह हैं। विश्वामित्र जी यह समझते हैं कि इस समय परशुराम की स्थिति सावन के अंधे की तरह हो गई है, यानी उन्हें क्रोध और अहंकार ने अंधा कर दिया है, और इसलिए उन्हें सही रास्ता या समझ नहीं दिखाई दे रही। वे जो समझ रहे हैं वह वास्तविकता से बहुत दूर है। अंततः भगवान राम के सरल स्वभाव से प्रभावित होकर परशुराम शांत हो जाते है। इस दौरान समिति के अध्यक्ष एसके चौबे, कार्यवाहक अध्यक्ष आशीष तिवारी, सचिव सुशील सिंह, अनवेश अग्रवाल, नीलकांत तिवारी, गिरिश नारायण सिंह, नीलेश मिश्रा, सुनील अग्रवाल, रामदेव मौर्य, ज्ञान शंकर शुक्ला, सुनीत खत्री, दिनेश सिंह मुंडी, छोटेलाल मिश्रा, अरविन्द सोनी, सभासद अमित गुप्ता, समीर माली, अभिषेक सेठ, अनीश सेठ, तरन गोयल, कुमार सौरभ सिंह, रंजीत सिंह, कैलाश नाथ एक्स प्रेम सागर, राजु चौधरी इत्यादि लोग मौजूद रहे।

रिपोर्टर - कुम्धज चौधरी

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